मुक्ति

पिंजड़े का पंछी

खुले आकाश में आते

मुक्त महसूस करे

यह तो ठीक ही है

परन्तु अगर

पिंजड़े का दरवाजा

खुला होते हुए भी

वह पिंजड़े में ही बना रहे और

आजादी के लिए प्रार्थना करता रहे तो

मतलब साफ है

आजादी के द्वार के प्रति वह

सजग नही है

वह कैद है

अपनी ही सोच में

................................... अरुण




Comments

Udan Tashtari said…
बहुत सुन्दर!
सुज्ञ said…
बहुत ही सारगर्भित!!
साधुवाद!
लालसाओं के भंवर में फ़ंसे मुक्ति चाहक भी तुच्छ सुखों के प्रलोभन में मुक्तिद्वार देख ही नहिं पाते।

वह कैद है अपनी ही सोच में
Sunil Kumar said…
सारगर्भित!!बहुत सुन्दर!
Asha Joglekar said…
या कि आलसी जो पर फैला कर उड जाना ही नही चाहता । बैठे बिठाये जो मिल रही है ।
अच्छी अभिव्यक्ति.....दोनों पहलू हो सकते हैं...या तो सजग नहीं है या आलसी है
कम शब्दों में बहुत जबरदस्त लिख डाला है आपने।

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