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पाँच विचार

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इच्छा का संचार विचार की शक्ल लेता है और इच्छा आभासित होती है विचारक के रूप में.. मन है..इच्छा का संचार -अरुण लोग अच्छे हो न पाए पर दिख रहे अच्छे ‘अच्छाईयत’ का आजकल जो बाज़ार गरम है -अरुण जो हमने रची चीज़ें.. हमें ही ख़रीद लेती हैं और फिर, नया कुछ भी हमें रचने नही देती -अरुण दूसरों से पाए हुए चिराग़….अंधेरा हटाते नही, गहराते हैं -अरुण बदन-ओ-मन से उसे क्यों जुड़ाव हो हैं दोनों किराये पे मिले…… रहन वास्ते -अरुण

तीन पोस्टस्

प्रकाश’ का तात्पर्य **************** प्रकाश के प्रभाव को उजाला कहिए और प्रकाश के अभाव को अंधेरा अस्तित्व, जब समझ (प्रकाश) में आए, ज्ञान (उजाला) कहिए और जब वह समझ के दूर (अभाव) हो कहिए उसे अज्ञान (अंधेरा) -अरुण ‘अपना’ ही खो जाए तो ******************** अपना कुछ खो जाए तो दुख ही दुख यह ‘अपना’ ही खो जाए तो ख़ुशी ही ख़ुशी…टिकाऊ ख़ुशी -अरुण कैसे नादान हैं हम? ************* अजिंदे भूत ने क़ब्ज़ा कर रखा है इस जिंदगी पर और छोड रखा है दो साँसों और दिल की धड़कनों का सहारा जीने के लिए एक हम हैं ऐसे मूरख कि भूत में समायी हुई ग़ैरमौजूदगी से ही पूछ रहें हैं अपनी मौजूदगी के बारे में उठ्ठे सवाल -अरुण

नज़र से नज़रिये से नही

नज़र से नज़रिये से नही ******************** रास्ते पर रखकर अपनी चौकस नज़र चालक सुरक्षित गाड़ी चलाता है फिर, जिंदगी की गाड़ी क्यों हम, अपनी चौकस नज़र से नही, अपने नज़रिये से चलाते हैं ? -अरुण

दो रचनाएँ आज के दिन

दर्शक और दुनिया *************** दर्पण हो पर उसमें प्रतिबंब न दिखे तो फिर वह दर्पण नही है दुनिया हो मगर उसे देखनेवाला न हो तो फिर वह दुनिया नही है हरेक दर्शक अपनी दुनिया अपने साथ लेकर आता है और अपने ही साथ लेकर जाता है -अरुण एक शेर ******* तमाशा ही तमाशा है न कोई भी तमाशाई नज़र भी है नज़ारा…है सृजन इस सृष्टि का -अरुण

समय-स्थान-हक़ीक़त

समय-स्थान-हक़ीक़त ******************* गाड़ी चल रही आगे.......कि रस्ता जा रहा पीछे? खड़ी पूरी हक़ीक़त ....समय एवं स्थान के चलते चलना और ठहरना धारणा है.. ...है ख़याली सोच जगत का खेल क्या जानों दिमाग़ी खेल के चलते? -अरुण
मनुष्य-चेतना की कहानी ******************* हर क्षण हर पल आदमी गहरी नींद में विश्राम करता,स्वप्न के आकाश में फड़फड़ाता और विचारों के बहाव में बहता हुआ ज़िंदगी जीता रहता है। अपनी परिपूर्ण मानसिक अवस्था का परिपूर्ण स्मरण रखनेवालों को ही इस सच्चाई का एहसास होता रहा होगा। आंशिक स्मरण रखनेवाले हम जैसे लोग किसी एक ही अवस्था (जाग, स्वप्न या नींद)- से ही जुड़ा महसूस करते हैं। सागर कहाँ है? सागर एक ही वक्त, एक ही पल लहरों में है, लहरों को उभारती गहराईंयों में है और तल पर शांत लेटी तरंगों में भी है। मनुष्य की चेतना की कहानी इससे भिन्न नही है। -अरुण

नयी पोस्ट

क्या कोई आसमान को देखने की सोचेगा खुद की ऊँचाई चौड़ाई गहराई.. खो देने के बाद? -अरुण अक्रीय ही देख पाए सक्रीयता.. शून्य ही समझ पाए शब्द और पैमाने...इसीलिए शून्य में जो ठहरे वही हो पाए...सयाने -अरुण तमन्ना है ताक़त....ज़िंदगी में जान फूँक देती है मगर उसमें जो अटके उसे वह तबाह कर देती है -अरुण तूफ़ानों से परेशान  ज़िंदगी चाहकर भी क्या चाहे..राहत चाहे.. सुकून न मिल पाया कभी चाहने से..सो बस राहत चाहे -अरुण एक रूपक ********* मानो मशीन चलती है आवाज उठाती जाती रूह का मान उस आवाज को ग़लती से मिले बस यही सोच घुसी जबसे.....इंसानी क़ौम क़ुदरती देह में......बेकुदरत मन हक़ से जिए -अरुण