छूता अज्ञात है पर ...



अज्ञात से उठती प्रेम-गंध,
उडता भक्ति-रंग,
पसरता शांति रस 
सबको ही छूता है
सब को ही भाता है
पर
अज्ञानवश इसका स्रोत
मनुष्य को किसी ज्ञात ही में
नजर आता है और इसकारण
वह उस ज्ञात के मोह में
रम जाता है
-अरुण

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