चलो इक बार फिर से ... अजनबी बन जाएँ हम दोनों



साहिर लुधियानवी की रचना-
चलो इक बार फिरसे अजनबी बन जाएँ हम दोनों ....
आध्यात्मिक सोच से मेल खाती है
अनुभूति जबतक परिचित नहीं होती ...यानि जबतक उसे कोई
नाम नहीं होता  वह विशुद्ध अवस्था में होती है
परिचय का रोग लग जाते ही .. मानसिक पीडाओं और विवंचनाओं का
सिलसिला शुरू हो जाता है ..
चित्त को आनंद देने वाली संवेदना
मन के लिए एक बोझ बनाते हुए उसे वेदना देती है
-अरुण         
    

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