मन तो है प्रतिबिम्ब



मन तो है
जीवन का प्रतिबिम्ब
अहंकार है इसी प्रतिबिम्ब का एक
चलायमान केंद्र.
यही केंद्र मन को चलाता रहता है,
मन की इस गतिशीलता को ही मनुष्य
असली जीवन समझते हुए जीने की
भूल करता है
जो मन के परे जागा
वही जीवन से परिचित हो सका
- अरुण

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