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सच्ची बातें और कुछ कविताएँ

सच्ची बात ************ भीतर.. प्रकाश कायम है...लाना नहीं है, फिर आदमी अदिव्य  (unenlightened) क्यों है?, क्योंकि कल्प-सामग्री  (image-material) से बने ज्ञान-समझ-अहंकार की दीवार ने प्रकाश को उसतक पहुँचने से रोक रख्खा है, जब दीवार ढहेगी तब ...दिव्यत्व जागेगा -अरुण   सच्ची बात ************ किसी अनजान शहर में ......राह चलते जो भी दिखता है उसे हम देखते जाते हैं - आदमी, पेड़, वस्तुएं, दुकाने... ऐसे ही  सबकुछ - उनसे एक रिश्ता तो बनता है पर न तो हम उन्हें स्वीकरते हैं और न ही उन्हें नकारते हैं. इसतरह जुड़कर भी अनजुड़े रहे रिश्ते में आदमी का स्व (Self) उघाड़ता जाता है बिना किसी कोशिश के भीतर बाहर का अभिन्न्त्व खुला हो जाता है आदमी के ‘भीतर’ का उसके ‘बाहर’ से यही खरा रिश्ता है. परन्तु हम तो हमेशा ...पूर्वाग्रह ग्रस्त (baised और prejudiced) रिश्तों में ही जीते हैं -अरुण रुबाई ******* आसमां वक्त से हटते हुए........ ..देखा न कभी हर सेहेर  बाद रात....सिलसिला बदला न कभी कभी तूफान कभी मंद....... ..कभी ठहरा समीर आसमां अपनी जगह ठहरासा,  हिलता न कभी अरुण सच्ची बात ****