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Showing posts from April, 2013

आदमी की रोजाना जिंदगी

दो सांसो के लिये देह को पोसना पड़ता है अस्मिता को बनाये रखने   संबंधो को सवारना पड़ता है फिर, देह को पोसने के लिए श्रम की जरूरत है फिर, संबंधो को सवारने के लिए व्यवस्था की जरूरत है श्रम यानि सारे अर्थ-कलाप व्यवस्था यानि सत्ता, संघर्ष, प्रतिरक्षा, नीति-नियम, कायदे. इसतरह दो सांसो और अस्मिता का ही फैलाव है आदमी की यह रोजाना जिंदगी -अरुण  

ध्यान यानि पुनः जागृति

अपने इस एक ही देह के निमित्त से आदमी एक ही वक्त तीन तरह की जिंदगियां जी रहा है, biological, psychological और spiritual. परन्तु उसकी psychological जिंदगी ही leading या controlling बन गई है और इसकारण आदमी अपनी जिंदगी की सही समझ खो बैठा है. ध्यान इसी सही समझ पर पुनः जागृत होने का नाम है -अरुण

संसारी अर्ध-जागृत ही है

बीते से फले स्वप्न और वास्तविकता पर चढ़ी   मान्यताओं की मूर्छा पहने आदमी अपनी जागी अवस्था में भी अर्ध जागृत ही है. नींद में वह या तो अर्ध-निद्रित है या पूर्ण निद्रित. इस तरह तीन अवस्थाएं तो संसारी के अनुभव में उतरी हैं, परन्तु पूर्ण जागृति की अवस्था कुछ बिरलों को ही फली है. -अरुण

आत्म-वैज्ञानिक बनाम आत्मज्ञानी

मनोविज्ञान संशोधन के माध्यम से मन को देखे बिना मन के बारे में सही सही जानकारी इकठ्ठा करता है. आत्म-विज्ञान अंतर ध्यान का उपयोग कर मन के परे क्या है यह समझने की चेष्टा करता है परन्तु जिसने परिस्थिति-देह-दृदय-मन- और मन के परे वाली स्थिति को सकलरूप में, प्रज्ञ होकर स्पष्टतः देख लिया, वही आत्मज्ञानी है -अरुण  

बाकी सर्व व्यर्थ की झंझट

साँस चले, धड़कन मन-मौजी पांच द्वार बैठे पच फौजी उठन गिरावन पकडे दौड़े हाँथ पाँव, यह देह सहेजे चलती है ऊर्जा की गाड़ी खड़ी सामने दुनिया सारी जीवन केवल इतना ही है बाकी सर्व व्यर्थ की झंझट -अरुण