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Showing posts from March, 2014

मनोभंजन या मनोरंजन

साधक को ज्ञानी जो बातें कहता है वह साधक के मनोभंजन के लिए होती हैं पर विडम्बना तो यही है कि साधक उसे मनोरंजन की सामग्री समझकर सुनता रहता हैं   -अरुण

अरविंद केजरीवाल भी उनमें से ही एक .......

देखा तो यही जाता है कि लोग चुनाव जीतने के लिए लड़ते हैं. हाँ यह भी सच है कि कभी कभी प्रतिष्ठा के लिए तो कभी प्रतिस्पर्धी के वोटों को काटने के लिए भी चुनाव लढे जाते हैं. अपने हारने की पूरी तैयारी के साथ प्रतिस्पर्धी को परास्त करने के लिए (हराने के लिए नही) चुनाव लड़नेवाले बिरले ही होंगे. अरविन्द केजरीवाल भी उनमें से ही एक हैं. उनकी यह वाराणसी की लढाई ऐसी ही एक मिसाल है. जो हारने की पूरी उम्मीद के साथ, पूरे दमखम से लडेगा, वही अपने मिशन में (चुनाव में नही ) कामयाब हो सकता है. -अरुण

अडवानीजी, जोशीजी, जसवंतजी... मै माफ़ी चाहता हूँ

मन से हो या बेमन से हो , जब पार्टी के सभी दिग्गजों ने मेरी महत्वाकांक्षा को बड़े ही नम्रभाव (अविर्भाव) और तारीफों के पुल बांधकर ऊँचा उठाने , उसे पुष्ट करने का मुझसे करार किया हुआ है और जिसके बदले में मैंने उन्हें जीत दिलाने का वादा किया हुआ है ,... आपकी दबी हुई सत्ता कामनाएं और पितामह होने का आपने जो सम्मान उपभोगा उसका गरूर ... वे सब बीच बीच में ही अपना सर क्यों उठाते हैं ? क्यों मेरे हवाई सपनों को नीचे खींचते हैं ?... यह सब ठीक नहीं है. मै भी ऐसे में आपको आपकी आज की असली जगह दिखाने के लिए मजबूर हो जाता हूँ. चाहता तो नहीं पर आपका अपमान किये जाता हूँ. मेरे द्वारा आश्वासित जीत की लालसा या आशा के नीचे आपके सभी साथी , चेले , प्रशंसक इतने झुके हुए हैं कि कोई भी इस समय आपका पक्ष नहीं ले सकता. आप को तो यह सब पता है... फिर भी आप बार बार .......... खैर , खुलेआम तो नही , पर मन ही मन ,... अडवानीजी , जोशीजी , जसवंतजी और ऐसे कई जी.. ओं से मै माफी चाहता हूँ. देश को यदि कांग्रेस मुक्त (बीजेपीबन्ध) बनाना हो तो .. आपको यह सब सहना ही पड़ेगा. - अरुण

'आम आदमी' कौन ?

किसी भी राजनैतिक संलग्नता से दूर हटकर , आर्थिक-सामाजिक सत्ता का फ़ायदा न उठाते हुए जो एक सर्वसाधारण नागरिक की हैसियत से , इस देश में रहता है वह है इस देश का ' आम आदमी ' । यह आम आदमी अब राजनीति के अखाड़े में उतर पड़ा है और इसीलिए इसका सारा आचरण अटपटासा , विचित्र , unconventional लग रहा है। आम आदमी की हैसियत बनाए रखते हुए यह राजनैतिक दाँवपेच खेल रहा है। प्रस्थापित राजनीतिक व्यवस्था को पछाड़ने में रत है। राजनीति में रहते हुए क्या यह संभव है ?....... यह भविष्य ही बतायेगा। - अरुण

विज्ञान और तत्वबोध

हर वैज्ञानिक शोध-चिंतन सापेक्ष ही होता है । यह जब सहजता से, निरपेक्षता की कक्षा में प्रवेश करता है, तत्व- चिंतन में रूपांतरित हो जाता है । विज्ञान ही तत्वबोधी हो सकता है । -अरुण

एक शेर

एक शेर उठना हो ज़मीं से ऊपर, पंखों की ज़रूरत होगी धरती से झगड़कर कोई धरती से न उठ पाया है - अरुण

जानता हूँ पर देख नहीं पाता

जिस रास्ते पर चलता हूँ वहां की सभी बाधाओं के बारे में भलीभांति जानता हूँ. हर गढ्ढे की गहराई का समुचित ज्ञान है, फिर भी हर बार धोखा खा जाता हूँ, फिर फिर, बाधाओं से टकराता हूँ, गढ्ढ़ों में गिर जाता हूँ, शायद, बाधाएं जब सामने होतीं हैं... मै उन्हें देख नहीं पाता -अरुण