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Showing posts from January, 2011

सार असार संसार

जो है अस्तित्व में और जिसके होनेपन में अस्तित्व है उसे काया कहें जो नही है अस्तित्व में फिरभी अस्तित्व जिसके होनेपन को ले आता है उसे माया कहें और काया माया के इस सार असार को ही संसार कहें .......................... अरुण

दुःख का जन्म ही थम जाए

दुःख दूर नही किया जा सकता है हाँ , उसे टाला जा सकता है दुःख का कारण दूर हो जाए – बस परन्तु यह कारण कहीं बाहर नही दुःख की अनुभूति में ही छुपा हुआ है जिसे त्रयस्थ भाव से देखना बन पड़े तो दुःख का जन्म ही थम जाए ................................ अरुण

नम्रता क्यों अच्छी लगती है?

नम्र व्यक्ति का व्यक्तित्व हमें अच्छा लगता है ऐसे में सवाल उठना चाहिए क्यों अच्छा लगता है ? क्या इसलिए कि नम्रता हमारे लिए सहज नही हो पाती या इसलिए कि उसकी नम्रता अप्रत्यक्ष रूप से हमारे अहंकार की तुष्टि है .......................................... अरुण

समझ और ज्ञान

सामने जो भी वस्तु खड़ी हो आईने में पूरी की पूरी उतर आती है टुकड़ों टुकड़ों में प्रतिबिंबित नही होती अंतर-दृष्टि भी ऐसी ही अखंडित हो तो समझ ( Wisdom) फलती है अन्यथा केवल ज्ञान (Knowledge) ही उत्पन्न होता है सत्य-बोध के लिए समझ की जरूरत है ज्ञान की नही ........................................ अरुण

योगाभ्यास प्रतिबन्ध है, इलाज नही

योगाभ्यास बीमारी होने से पहले ही आदमी को उससे बचाता है ऐसी योग-साधना जिन्हें सहज हो चुकी है उनका मार्गदर्शन उपयोगी है सिर्फ उनके लिए जो अभी बीमार नही है, उनके लिए नही जो किसी बीमारी से पीड़ित हैं ........................................ अरुण

वक्त

ख्याल चलते हैं समय चलता नही है आदमी का ये जगत थमता नही है आदमी ही गिन रहा है वक्त की परतें मगर वक्त इंसा को कहीं गिनता नही है .................................... अरुण

समझ संवाद-विवाद से परे

संवाद हो या विवाद दोनों के लिए दो या दो से अधिक टुकड़ों (पक्षों या व्यक्तियों) का होना जरूरी है समझ एक की एक है जिसमें अखंडत्व होता है परन्तु यदि मन के भीतर दो या दो से अधिक टुकड़े संवाद कर रहे हों तो वह समझ नही, वह तो मन के भीतर चलनेवाला संवाद या विवाद है विचार तो टुकड़ों के बीच के संवाद/विवाद से फलता है जब विचार निष्क्रीय हो जाता है तभी समझ की संभावन फलती है ............................................... अरुण

मनरुपी जहाज

सागर की लहरों पर एक तैरता जहाज और जहाज के डेक पर आदमी की बस्ती – इस बस्ती में अशांति है आदमी आदमी के बीच झगडा है, वादविवाद है परन्तु इससे सागर में कोई आन्दोलन पैदा नही होता परन्तु यदि झगडा इस स्तर पर पहुंचे कि युद्ध शुरू हो जाए, एक दूसरे पर बमबारी होने लगे और सारा जहाज ही डगमगाने लगे तब शायद सागर की लहरों में उफान जैसा आन्दोलन होने लगे पर हर स्थिति में सागर को कई फर्क नही पडता सागर एक त्रयास्थ की तरह सारा तमाशा निहारता रहेगा ठीक इसी तरह – अस्तित्व के सागर में देह की लहरें हैं और इन लहरों पे मानवीय मन एक जहाज की तरह तैर रहा है अपने भीतर विचार-स्वप्नों की एक बस्ती लिए ........................................................ अरुण

जागना नींद में और जागना नींद से

नींद में जागना इस समाजधारी आदमी ने अपने जन्म के उपरांत सीख लिया है परन्तु नींद से जागना अलग बात है शायद बिरले ही इस तरह जागे होंगे .................................................... अरुण

मिशन यानी करुणा नही

साधारणतः अच्छे उद्देश्य या हेतु से किया गया हर काम सही माना जाता है परन्तु अगर नींद में खोया आदमी सही हेतु से भी कोई काम करे वह अच्छा नही हो सकता ------ ‘ यह ईश्वर की सेवा है ’ - ऐसा मानकर आदमी के समाज में आदमी की सेवा करने वालों के काम को सराहा जाए – यह स्वाभाविक ही है परन्तु अध्यात्मिक स्तर पर यह भी स्वार्थ-कर्म ही है क्योंकि यह करुणा (दया नही) से फला काम नही है .............................................. अरुण

जीवंत जीवन

आदमी देह-मन से चुस्त हो अथवा सुस्त दोनों ही अवस्था में वह भटका हुआ है जब चुस्त होता है तब विचारों में और जब सुस्त होता है तब स्वप्न में भटक जाता है अपनी इस पल पल की भटकन के प्रति जो सावधान और सजग हो उसी का जीवन जीवंत है ......................................... अरुण

आचरण-परिवर्तन-संवाद कर्ताओं के लिए

बात कहनी है सही, सही अंदाज में मगर जिससे सुननेवाले की बदल जाए डगर ......................... अरुण