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Showing posts from April, 2012

दोहरा आचरण

आदमी में समझ भी है और समझ से भागने की प्रवृत्ति भी, बैसे ही उसे अपनी मूर्खता का तो परिचय है पर वह इसकी जिम्मेदारी बाहरी तत्वों पर थोपने की प्रवृत्ति का भी शिकार है. जबतक आदमी में अपने स्वतंत्र अस्तित्व के होने का मोह बरक़रार है आदमी के इस दोहरे आचरण का कोई इलाज नही - अरुण     

जान और जानना

जान और जानना ये दोनों ही शब्द एक दूसरे के करीब दिखते तो हैं पर एक दुसरे के विरोध में खड़े हैं सत्य अस्तित्व की जान है परन्तु सत्य को जानने वाले अस्तित्व को जी नही पाते अस्तित्व को तन मन और ह्रदय की समग्रता से जीनेवाले, जरूरी नही कि अस्तित्व के सत्य को जानते ही हों -अरुण

किसलय की छावों में छुपकर

किसलय की छावों में छुपकर मेरी बाँहों में आ जाना दुनिया की नज़रों से बचकर मेरी नज़रों में आ जाना तेरी पूजा के खातिर मै, अंतर में हूँ नव-स्वप्न लिए तेरा सिंगार रचाने को, प्रेमाश्रु का मै रत्न लिए बैठा हूँ मै कितने पल से, वो पल पल सार्थक कर देना दुनिया की नज़रों से बचकर मेरी नज़रों में आ जाना तेरे दर्शन के खातिर अब, इन नयनों में आशाएं हैं मस्तिक पट पर अब तेरी ही स्मृतियों की रेखाएँ हैं तुम आज प्रतिक्षा-भूमि पर, क्षण मधुर मिलन के बो देना दुनिया की नज़रों से बचकर मेरी नज़रों में आ जाना मधुमिलन-पर्व के खातिर अब, सब पर्वों ने धीरज खोया क्षण क्षण प्रीती ही मेला जब, मेलों से चित्त नही भाया सब पर्व मानने के खातिर सहजीवन पर्व दिला देना   दुनिया की नज़रों से बचकर मेरी नज़रों में आ जाना किसलय की छावों में छुपकर मेरी बाँहों में आ जाना दुनिया की नज़रों से बचकर मेरी नज़रों में आ जाना -अरुण

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के सहर होने तक, धड़कने दिल की उलझ जाएँ गुफ्तगू कर लें जुबां से कुछ न कहें, रूह्भरी आँखों में डूबकर वक्त को खामोश बेअसर कर लें जुनूने इश्क में बेहोश और गरम सांसे फजा की छाँव में अपनी जवां महक भर लें बेखुदी रात की तनहाइयों से यूँ लिपटे बेखतर दिल हो, सुबह हो तो बेखबर कर ले -अरुण

कुदरत न जनमती है

कुदरत न जनमती है न मरती है वो कभी कुदरत से जो जनमी है वो है मेरी शख्सियत -अरुण

समय को विश्राम दो

समय को विश्राम दो इस बाह में तन डालकर आस में जो थक गया उस रूप का श्रृंगारकर   नयन में बन ढल गये जलकण तुम्हारे धीर के ओंठ पर अब सो रहे हैं गीत लंबे पीर के तपन में जो जल रहा सौंदर्य उसका ख्यालकर समय को विश्राम दो इस बाह में तन डालकर धडकनों में भय समाया है गमक न प्रीत की वेदना की गूँज है, अब गूँज ना मधु-गीत की शुभ स्वरों को जन्म दो इस रुदन संहारकर समय को विश्राम दो इस बाह में तन डालकर असहायता का बिम्ब अब मुखपर चमकता जा रहा नैराश्य का ही भाव अब दिल में सुलगता जा रहा लो आसमय दुनिया इन्ही हांथो का लो आधारधर समय को विश्राम दो इस बाह में तन डालकर -अरुण

एक युगल गीत

आओ मिलकर चांदनी में हसते गाते जाएँ मंजिल की सूनी राहों पर, सपने-फूल सजाएँ देखो ये चांदनी, चंदा के नज़रों में खो गई देखो ये चांदनी, चंदा का दिल भी तो ले गई नर्मसी हवाओं पर, ये प्यार झूल जाए प्यार के समन्दर की हर लहर मुस्कुराए पूछो क्यों प्यार के, आसमाँ का पंछी तू हो गया पूछो क्यों खुद को, फूल चमन का मेरे बन गया शर्म की घटाओं से ये हुस्न भींग जाए आसमाँ के तारों से हम तुझको ढूंढ लाए आओ मिलकर चांदनी में हसते गाते जाएँ मंजिल की सूनी राहों पर, सपने-फूल सजाएँ -अरुण

मै तुम्हें कौन से तोहफे सजा के लाऊं अब

खुली राहों में सिसकती हुई रातों के सिवा मै तुम्हें कौन से तोहफे सजा के लाऊं अब अब तो जीवन में कहीं ख्वाब का सिंगार नही मेरी रातों में पला दर्द है बहार नही मेरी डूबी हुई हसरत को सिवा मरने के किसी रंगीन किनारे से सरोकार नही घने जंगल में सुलगती हुई शाखों के सिवा मै तुम्हें कौन से तोहफे सजा के लाऊं अब मेरी आँखों में बसे अश्क बसी चाह नही मै अकेला हूँ मेरा कोई हमराह नही मेरी नाकाम उमंगों को सिवा रोने के गम हटाने की मिली और कोई राह नही गम के बोझ से दबती हुई सांसों के सिवा मै तुम्हें कौन से तोहफे सजा के लाऊं अब -अरुण

इक थम जाता सब हिल जाते

इक थम जाता सब हिल जाते, ऐसे रिश्तेनाते हैं फिर भी अपनी अपनी रट ही, क्यों बंदे दुहराते है कल तक थे तुम गैर पराये, कोई भी नाता ना था आज अचानक क्या हो बैठा, सुध तेरी हम लेते हैं   तुझको दुख में देख सिहरता, आँखें भी नम होती हैं वक्त गुजरते, पल दो पल का, जैसे थे हो जाते हैं लोग यहाँ पर आते जाते, मिलन विरह का खेल यहाँ       लब्ज बदलते रहते किस्से वही पुराने रहते हैं   जिसकी खुलती आँखें उसको कांटे कांटे दिख जाएँ नींद पड़ी हो आँखों में गर, सपने चुबते रहते हैं     -अरुण

किसने जाना था के

किसने जाना था के बदल जाएगा, वक्त का नूर कल करीब होंगे खयालों में, निगाहों से तो दूर वक्त के साथ बदलनी है तो बदले हर बात जो गई बीत, उसे कौन बदल पाए हुजूर दिन गुजरते हैं तो सब घाव भी भर जाते हैं फिर भी रह जाते हैं हर हाल में, कुछ दाग जरूर चंद लम्हों की मुलाकात का जादू कैसा जिंदगीभर उन्ही लम्हों का किया करते गरूर इश्क में जारी रहे सिलसिला गुनाहों का ये एहम बात नही, किसने किया पहला कसूर - अरुण

न शरमाओ हमारे गीत पढकर

तुम्हारी साद इसमें है, तुम्हारा प्रेम इसमें है तुम्हारे रूप मदिरा का मधुरतम जाम इसमें है गंवाता ही गया मै खुद को ऐसे गीत गढ़कर न शरमाओ हमारे गीत पढकर तुम्हारी लाज को पाकर, भरी हर आह इसमें है तुम्हारे संग जीने की बनी हर चाह इसमें है सजाये याद के मोती इन्ही गीतों में जड़कर न शरमाओ हमारे गीत पढकर बिछुड़कर हमने पाया विरह जिसका राग इसमें है मिलन होते दृदय ने जो मनाया फाग इसमें है विरह-आँसू, मिलन के पर्व आए इसमें चलकर न शरमाओ हमारे गीत पढकर तुम्हारे और मेरे जज्ब की तस्वीर इसमें है इन्ही दो दिल को जो जकडे वही जंजीर इसमें है हंसी आँसू मोहब्बत के, गिराए इसमें खुलकर न शरमाओ हमारे गीत पढकर - अरुण

मै तो तनहा ही रहा ...

तुझे इस दिल में बसाने की हवस जागी तो मेरे सोये हुए ख्वाबों के दिये जल ही गये याद हर राह – ओ- हर मोड पे जब जागी तो जज्बे उल्फत के नरम जहन में अब पल ही गये तेरे ख्यालों के सितारों को चमक आयी तो मेरे हर वक्त का अब चैन सब्र ढल ही गया आँखों आँखों में जहां नर्म से जज्बे जागे   सब्र की डोर से बांधा हुआ दिल हिल ही गया तेरी आँखों से बुलाहट की सदा आई तो दिल को एहसास हुआ प्यार तेरा झुक ही गया छुपी राहों से दर – ए – दिल पे चले आने पर मै तो तनहा ही रहा प्यार मेरा बिक ही गया -अरुण  

जिस प्यार पे इस दिल का कोई हक ही नही था

जिस प्यार पे इस दिल का कोई हक ही नही था वो प्यार सजाने से भला क्या होगा? जिस आस के सीने में सितारे ही नही थे उस आस पे जीने से भला क्या होगा? जिस साज में ना तर्ज थी बस गरज दबी थी वो साज बजाने से भला क्या होगा? जिस दिल में रफाकत नही दौलत की हवस थी बाँहों में समाने से भला क्या होगा? जिस रात की तकदीर में बस रात लिखी थी वो रात हटाने से भला क्या होगा? गर हांथ की तकदीर में कांटे ही लिखे थे फूलों पे झुकाने से भला क्या होगा? - अरुण    

ये काटा चुबता जाएगा

माना कि तुमने पायी है फूलों के सेजों कि दुनिया साथी भी ऐसा पाया जो क़दमों पे रखेगा खुशियाँ पर जब भी आँखें मिचोगी ये प्यार नजर ही आएगा जब जब फूलों से खेलोगी ये काटा चुबता जाएगा तुम लाख, चमकते बादल पे बीते की याद भुला दोगी पर उसी चमकते बादल से ये गम हमेशा झांकेगा तुम नयी सुनहली माटी में वो चाह पुरानी रौन्दोगी पर उसी फूटती माटी में तेरा पैर फिसलता जाएगा घायल बाँहों में जब तेरी एक बाँह नयी ही आएगी घायल बाँहों का घाव मगर वो वही पुराना रोयेगा माना कि तुमने पायी है फूलों के सेजों कि दुनिया साथी भी ऐसा पाया जो क़दमों पे रखेगा खुशियाँ -अरुण

जब कभी गम का तूफां उभरने लगता है

जब कभी गम का तूफां उभरने लगता है मै उसे सतहे नगमों पे बसा देता हूँ मेरी राहें अब उम्मीद भरी राहें हैं और मंजिलकी तरफ चाह की निगाहें हैं मै न चाहूँगा मेरा दर्द यहाँ आ जाए मै उसे फूल ए नगमों से सजा देता हूँ मेरी रंगीन मुरादों का ये सवेरा है जमी की हर खुशी और हर हंसी का डेरा है गर कभी रात मोहब्बत की पास आती है मै उसे सेज ए नगमों पे सुला देता हूँ जमीं पे और भी हैं दर्द, वो हटाने हैं अमन-ओ-दोस्ती के झोपड़े बसाने हैं जब मेरा दर्द इरादों को चोट देता है मै उसे दर्द-ए- नगमों में मिला देता हूँ जब कभी गम का तूफां उभरने लगता है मै उसे सतहे नगमों पे बसा देता हूँ -अरुण

कभी बीती हुई बातों का खयाल आता है

कभी बीती हुई बातों का खयाल आता है खोया दिल खुद से यही कह के सम्हल जाता है नजरें जिन्होंने मिल के बुझाई न दिल प्यास वो मेरे पास न होती तो बहोत अच्छा था सोये तुम्हारी जुल्फ के साये में मेरी आस ये हवस दिल में न होती तो बहोत अच्छा था जनम जनम का रहे साथ यह कह कर बढे थे हांथ गर मिले हांथ न होते तो बहोत अच्छा था जाहिर हुआ था जिससे छुपाया न गया प्यार प्यार जहिर ही न होता तो बहोत अच्छा था जीता था तेरा प्यार बैठा हूँ तुझे हार प्यार जीता ही न होता तो बहोत अच्छा था -अरुण

....... तुम्हे ही रोना आता है?

बिदाई की घडी पाकर तुम्हे ही रोना आता है? हमारे दिल ने भी हर दर्द का एहसास जाना है शिकायत है अगर तुझको, हमें रोना नही आया तो मतलब, तुझको मेरे दिल की गहराई को पाना है मै जानता हूँ कि तुमने अश्कों को दबाया था लबों पे मुस्कराहट की लकीरें हीं बनाई थी तुम्हारे दिल में जो उभरी हुई थी सख्त बेचैनी छुपाओ लाख, फिर भी तेरे चेहरे पर समायी थी बेचारा दिल, मोहब्बत की बड़ी उलझन सम्हाले था के तेरी उलझनों को देखकर मुश्किल न हो जाए के औरों से बचाकर जिसको ख़ामोशी में ढाला है वही उल्फत कहीं अश्कों में ढल जाहिर न हो जाए कहती हो तो तेरे अश्क का हर्जाना भर दूँगा मगर इक शर्त है, मुझको कभी भी याद ना लाना अगर एहसास हो जाए कि तुमने याद लाया था खुशी से झूमकर, मै अश्क को अनजाना कर दूँगा -अरुण   

कल हमारे गर्म आँसू ......

कल हमारे गर्म आँसू गम भुलाकर थम गये थे आज गम की दास्ताँ ही खत्म होकर थम गयी है अब नही उम्मीद कोई अब अपना गैर होगा अब न दिल में प्यार का गम ना किसी से बैर होगा हर घडी सब भूलने के ख्याल में ही रम गयी है आज गम की दास्ताँ ही ........... अब न गीतों में कोई भी रंज और अफ़सोस होगा और न उम्मीदों से भरमाता हुआ कुई जोश होगा अब हकीकत की सतह है भावना सब जम गयी है आज गम की दास्ताँ ही ........... आज मेरे जिंदगी की राह कोई मोड लेगी और तजुर्बे को सिरा-ए- जिंदगी से जोड़ लेगी मेरे गीतों के लिए है जो मिला वो कम नही है आज गम की दास्ताँ ही ........... -अरुण

नही मुमकिन भुला देना

तुम्हारा प्यार सच्चा था नही मुमकिन भुला देना के जिसकी हो चुकी हो तुम उसे भी प्यार वो देना जरुरी ये नही हर ख्वाब सच्चा हो ही जाता है तमन्ना का उजाला हर किसी आंगन में होता है लकीरें याद की जो बन चुकी हैं सब मिटा देना तुम्हारा प्यार सच्चा था नही ............... नही कुछ प्यार से शिकवा ये झूठी जिंदगानी है हमारे भावना की ये महज कोरी कहानी है नये सपनों के मेलों में नये ही गीत अब गाना तुम्हारा प्यार सच्चा था नही ............... -अरुण

कैसे तुम्हे सुनायें?

तुमने ही जो दर्द दिया था जिसकी धुन दिल गाये कैसे तुम्हे सुनायें?   नगमा बन गया,गम इस दिल का तर्ज बन गयी आहें खतम न होगी जो धुन दिल की वो कैसे दुहरायें कैसे तुम्हे सुनायें?   जिस धुन के संग साज भी रोये महफिल अश्क बहाए वो धुन अपने लब पे लाकर कैसे जी बहलाएँ कैसे तुम्हे सुनायें?   जिस धुन का हर मोड है घायल जिसमें दर्द कराहे गम देकर खुद हसनेवाले कैसे तुम्हे सुनायें? - कैसे तुम्हे सुनायें?   तुमने ही जो दर्द दिया था जिसकी धुन दिल गाये कैसे तुम्हे सुनायें?   -अरुण

भूलने की कोशिश करूँगा अगर ......

तुझे भूलने की मै कोशिश करूँगा अगर सामने तुम कभी फिर न आओ तेरे बने हैं जो मुझसे बिछुड़कर उन्हें भी मेरे सामने से हटाओ झूठी शिकायत करो न किसी से   के मुझको थी तुझको मोहब्बत नही थी खुदा के लिए, ऐसी बातें बनाकर अपने गुनाहों को यूँ ना दबाओ अपना बनाने ही तुझसे मिला था तेरे साथ ही फैसला जो किया था ये   बात खुदगर्ज इरादों की खातिर दुनिया की नज़रों से यूँ ना छुपाओ -अरुण