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Showing posts from October, 2011

‘मै’ ही गलत

सब कुछ सही पर मै गलत हूँ मै गलत हूँ क्योंकि मै हूँ .................................... अरुण

अन्ना के सभी मैनेजरस् पारदर्शी रहें

देश में भ्रष्टाचार बढ़कर इतना ज्वलनशील बन गया कि अन्ना की एक विशुद्ध चिनगारी विरोध की आग को भडकाने में सफल हो गयी । परन्तु इस चिनगारी के व्यवस्थापकों को ऐसा भ्रम हुआ दिखता है कि यह आग शायद उनके ही विशुद्ध आचरण का फल है । वे अन्ना की चिनगारी का फायदा उठाकर अपनी प्रतिमा उभारना चाहते हैं पर साथ ही भयभीत हैं कि कहीं यह चिनगारी उनके अपने कपडे न जला दे । आग से खेलने वालों को अग्नि परीक्षा देनी ही पड़ती है । जनता यह कतई नही चाहती कि भ्रष्टाचार से संघर्ष करने वालों की भीड़ में ऐसे लोग भी हों जो अपनी ईमानदार छवि की आड में, जाने अनजाने अपनी सत्ता जमाना चाहते हों । जनता के सवालों का जवाब तो उन्हें देना ही होगा । दूसरों के चरित्र पर खुली टिप्पणी करने वालों को अपना चरित्र पारदर्शी रखना होगा । उनके द्वारा दिये गये तार्किक जवाबों से जनता शायद चुप बैठ जाए पर कभी संतुष्ट न हो सकेगी, उनका पारदर्शी होना एक अनिवार्य शर्त है । ........................................................................................... अरुण

बस यही इच्छा .....

आयु के ६९ वर्ष पूरे हुए अब बस यही इच्छा - दो तरह के दीपक दो तरह के प्रकाश पहला सनातन तो दूसरा प्राणों के ओझल होते ही लुप्त हो जाए ऐसा हम सब के जीवन को सनातन प्रकाश का दर्शन हो जाए बस यही इच्छा ..................................... अरुण

दुराग्रही का ‘सत्याग्रह’

गांधीजी को व्यापक लोक-समर्थन मिला परन्तु वे इस समर्थन के बहाव में कभी बह नही गये, इस तथ्य को ध्यान में रखकर ही किसी की तुलना गांधीजी से करनी होगी । केवल यह देखकर की अपने चलाये आंदोलन से जनता खुश है, यह निष्कर्ष निकाल लेना की जनता अब कुछ भी करो या कहो, समर्थन देगी ही, एक बड़ी भूल होगी । सच्चे कारण के लिए, सच्चे मार्ग से किये गये आग्रह को ही सत्याग्रह कहा जाता है । समर्थन की लालच और समर्थन की ढाल बनाकर की जाने वाली ब्लैकमेलिंग को सत्याग्रह नही कहा जा सकता । जब जबाब देने की बात आयी तब मौनव्रत धारण करने वाले ‘ आधुनिक गांधी ’ ऊपर लिखी बात पर कृपया गौर करें । ................................................................................... अरुण

जीवन-सत्य का सम्यक दर्शन

बहुत पहले कहीं पढा था कि मनुष्य मूलतः दो उप-प्रणालियों वाली एक जीवन-प्रणाली है । ये उप-प्रणालियाँ हैं- ऊर्जा-पदार्थ प्रणाली एवं सूचना प्रणाली । अपनी आत्म-अनुसंधान की प्रक्रिया के दौरान मुझे इन उप-प्रणालियों का साक्षात्कार हुआ । मन,बुद्धि, विचार, स्मृति आदि सूचना प्रणाली द्वारा और अन्न-जल सेवन, शारीरिक कर्म एवं व्यायाम आदि ऊर्जा-पदार्थ प्रणाली द्वारा संचालित हैं । दोनों प्रणालियों पर ध्यान स्थिर होते ही एक ऐसा अवधान जागता है जिसमें मनुष्य सकल जीवन-सत्य का सम्यक दर्शन करने में समर्थ हो जाता है । ....................................................................................... अरुण