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Showing posts from December, 2012

गीता-आशय

जीवन की रणभूमि पर अर्जुन बन कर लड़ो, परन्तु एक ऐसा अर्जुन जिसके भीतर हिमालय का एकांत हो, रिश्तों या समाज का कोलाहल नहीं -अरुण  

यह भूल नही, भ्रान्ति है

जो बातें अस्तित्वगत है और चलती रहती हैं, उनकी तरफ हमारा ध्यान नही है, परन्तु जो बातें नहीं हैं और चलती लगती हैं हम उन सभी से तादात्म जोड़े हुए हैं जैसे- खून और उसकी गति, दिल और उसकी धड़कन, सांस और उसका आना जाना – इनकी तरफ हमारा ध्यान नहीं है, परन्तु अस्तित्व में जो हैं ही नहीं यानि सुख-दुःख, विचार-क्रमण मन की गति .... ऐसी बातों में हमारा ध्यान प्रतिपल डूबा पड़ा है. ऐसा किसी व्यक्ति विशेष की भूल के कारण नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवजाति की भ्रान्ति की वजह से हो रहा है -अरुण      

परिचय है दृष्टि-दोष

परिचय का चश्मा पहन देखत तू संसार अब नवीनतम कुछ नही, सब परिचय अनुसार किसी वस्तु, व्यक्ति या प्रसंग को, उसबाबत के परिचय से मुक्त होकर देखने से ही नया दिख पाएगा, परिचय में अटकी नजर नया न दिखला पाएगी -अरुण

जो पलड़े में बैठता

जो पलड़े में बैठता, तुलता है दिनरात खुद का बोझा छूटते, राजी हो हर बात -अरुण मन विकल्पों को खोजने और चुनने का काम करता रहता है, विकल्पों की आपसी तुलना में रमा रहता है, जिसके जीवन से चुननेवाले का बोझ हट गया, वह जीवन की हर स्थिति से राजी हो जाता है -अरुण    

फल की आकांक्षा हमेशा व्यथित

फल नही होता फलित तो वेदना की टीस चुभती, जो भी चाहा, पूर्ण होते     तृप्तता होती नदारद -अरुण