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Showing posts from June, 2017

जून २०१७ की रचनाएँ

मुक्तक ******** मँझधार में बहता जो... जीता है वही जो किनारे ढूँढता .. भयभीत है तृप्ति पाकर ठहर जाने की ललक कायरी मुर्दादिली की... रीत है -अरुण मुक्तक ****** जबतक उबाल न आया...पानी भाप न बन पाया बर्फ़ीला, शीतलतम कुनकुनापन..........सब बेकार आदमी कितना भी झुके या..........उठ जाए ऊपर भगवत्ता न जाग पाए अगर... उसका होना बेकार -अरुण न भला न बुरा ************ न कुछ बुरा है और न ही है कुछ भला क्योंकि एक ही वक्त एक ही साँस एक ही सर में एक ही रूपरंग लिए सबकुछ ढला.... साथ साथ परंतु बाहर... सामाजिकता की चौखटपर खडे पहरेदारों ने उसे अपने मापदंडों से बाँट दिया कुछ को ‘भला’ कहकर पुकारा तो कुछ पर ‘बुरे’ का लेबल चिपका दिया -अरुण कर्ता-धर्ता ******** घर की छत से होकर बह रही तेज हवा... सामने मैदान में खड़े पेड़ों को हिलाडुला रही है घर को लगे कि पेडों का हिलनाडुलना है उसीका कर्तब देह की छत... यानि सर.. जहाँसे होकर गुज़र रहा है विचारों का तूफ़ान और जिसके बलपर हो रहे सारे काम.... देह को लगे कि वही है इन कामों का कर्ता-धर्ता -अरुण तीनों अलग अलग ***************** त

मई २०१७ की रचनाएँ

मई २०१७ की रचनाएँ ----------------------------- रुबाई ***** यह जीवन सूरज की उर्जा है...गलत नही यह जीवन धरती का है सार.. गलत नही चलती साँस, बहती हवा और सारा आकाश यही तो है जीवन, यही है संसार….गलत नही -अरुण जिंदगी ही जीती है उसमें ..... ************************* बंदा किये जाता है.. अपने को ‘करनेवाला’ समझ दरअसल खुद ही किया जाता है वह.....न पता उसको लगे उसे कि वह जीता जिंदगी को अपने ढंग से दरअसल, जिंदगी ही जीती है उसमें... न पता उसको -अरुण सामान ज़रूरी —————— जीने के लिए होता है............. सामान ज़रूरी सामान की हिफाजत का......... सामान ज़रूरी बदले है जरूरत.............यूँ अपना सिलसिला जीने से अब ज़्यादा............. सामान ज़रूरी -अरुण मान्यताएँ ————— जहाँ से शुरू करो वह शुरुवात नही होती जहांपर ख़त्म करो वह अंत नही होता आरंभ और अंत तो केवल हैं मान्यताएँ जो मान लिया जाए वह सच नही होता -अरुण शब्दों में स्थिरा दिया गया ********************* कालप्रवाह को ‘समय’ नामक खाँचे में जमा दिया गया बहते जलकणों को... ‘नदी’ नामक वस्तु बना दिया गया वैसे तो हर पदार्थ, वस्