एक किस्सा
एक बाप को दो बेटे थे – शब्द्पंडित और बोधस्पर्शी वे जिस कमरे में बैठे थे..उसका दरवाजा बंद था और भीतर घुटन जैसी हो रही थी. बाप ने कहा - दरवाजा खोलो ! शब्द्पंडित ने ‘दरवाजा’ खोला..और भीतर से ‘द्वार’, ‘पट’, ‘पर्दा’ और ऐसे ही कई समानार्थी शब्दों की शृंखला बाहर निकल आई. बोधस्पर्शी ने दरवाजा खोला और भीतर ठन्डी बयार बहने लगी..और घुटन थम गई -अरुण