१ जून से ३० जून २०१६
एक शेर ******** जिंदगी खुद चलके आती है जीती है हर सांस में अपने हम समझते हैं के ये हमारी है.........हम जी रहे हैं उसे - अरुण एक शेर- २ जून २०१६ ********************* न यादों का सिलसिला होता न होती खाबों की ज़रूरत हर साँस आदमी की बन जाती एक मुकम्मल जिंदगी - अरुण एक शेर- ४ जून २०१६ ********************* दूर की शुरुवात होती अपने घर से ही, मगर घर को तो देखा नही... ब्रह्मांड की बातें करें - अरुण एक शेर ******* गहरा, धूसर, फीका अंधेरा..बंद आँखों में है तीनों का बसर रौशनी छेडती है पलकों को ..पलके हैं...... बेख़बर बेअसर - अरुण एक शेर ******** खेल के वास्ते खींची लकीरें थी......... यहाँपर बिगड़ते मेल दिल का बँट गये सब लोग पालों में - अरुण एक शेर ******** रोना-हँसना एक जैसा ही दिखे फिर भी समझ के भीड़ में... हर शख़्स की है दास्ताँ बिलकुल अलग - अरुण एक शेर ******** सारी दुनिया का होवे एक ही दिल एक ही सांस बंदा समझे के....... दुनिया उसके लिए जीती है - अरुण एक शेर ******* जिन रास्तों से थे गुज़रकर आ गये उन्हींको खींच लाते और बनाते हो नये? कहींभी चलके जाओ ...