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एक गजल ********** क्योंकर सज़ा रहे हो परछाईयों के घर? जागोगे जान जाओगे सपने के तू असर कुछ साँस ले रहे हैं .,ज़माने के वास्ते कुछ मेहरबाँ बने हैं ज़माने से सीखकर जो ख़ुद को देखता है..दूजों की आँख से दूजों को जान देता है अपनी निकालकर उसको ही लोग कहते खरा साधु खरा संत जिस 'संत' का है मोल किसी राजद्वार पर जिसके लिए बदन हो किराये का इक मकान उसको न चाहिए.......कोई दीपक मज़ार पर अरुण Please meditate on this – ------------------------------------- Mind cannot be total awareness only because it is a byproduct of unawareness. Yes, mind can be aware of itself (within) and others (without). Awareness is not being ‘aware of’. Awareness is a state which is off (or beyond) the mind. ‘Being aware of’ is a focusing by a subject on an object, whereas, awareness is beyond subject-object duality Arun मेरी बातें.... ************* मेरी बातें सुनके शायद तुम बदल जाओ मै बदल पाऊँ न पाऊँ कह नही सकता रास्ते होते नही मंजिल अजब ऐसी ऐसी मंजिल को बयां मै कर नही सकता भीड़ ब...