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वैसे तो कई गुज़रे आँगन से मेरे - आफताब
एक सीधे उतर आया दिल में आकर बस गया
अरुण

हिंदी
ये है बाहर वो है भीतर, भीतर बाहर कुछ भी नही
जहाँ दीवारें खड़ी न होती भीतर बाहर कुछ भी नही
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मराठी
आकाश नसते तर धरणी नसती
भिंती नसत्या तर मने ही नसती
अरुण





मराठी- बोध-स्पर्शिका
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व्यक्ति आणि व्यक्तिमत्व
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कोणती भाषा लिहिणे आहे, यावर
कागदा चा पोत ठरत नसतो
कसे ही असो व्यक्तिमत्व
व्यक्ति मात्र एकच असतो
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तहानल्यां चे गोत
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तहान केवळ माझीच...
ओलावतो माझेच मी ओठ
असती जर ती सामुहिक.. तर
बनले असते 'तहानल्यांचे' ही गोत
...............................
अरुण

हिंदी - चिंतन
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विज्ञान और आध्यात्म का आपसी सहयोग
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विज्ञान और आध्यात्म आपस में एक दूसरे से सहयोग करते हुए ही... सृष्टि और उसके जीवन संबंधी सत्य को समझ सकते हैं। विज्ञान के पास सही explanations हैं तो आध्यात्म के पास सही समझ । वैज्ञानिक Explanations के सही आकलन के लिए आध्यात्मिक स्पष्टता चाहिए और आध्यात्मिक स्पष्टता के लिए वैज्ञानिक दृष्टि । विज्ञान.... ज्ञान का (यानि बोध का.. जानकारी का नही) यंत्र है तो ज्ञान या आध्यात्म...... विज्ञान का अंतिम प्रतिफल । वैज्ञानिकों की अहंता (egoism) केवल तथ्य को सामने लाती है....सत्य को नही,  तो दार्शनिकों का गूढगुंजन ( mysticism)  सत्य को केवल विभूतित करता है... अनुभूतित नही । सत्य है मनोत्तर (Beyond mind) स्पष्ट समझ.... जिसके लिए दोनों ही  ज़रूरी हैं.... वैज्ञानिक तथ्यों का स्पर्श और चित्त का उत्कर्ष ।
अरुण

हिंदी
अपनी बनाई क़ैद में जकड़ा है आदमी
न आसमां न ज़मीं कुछ भी नही क़ैद है यहाँ
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मराठी
पाहिजे ते घडत नाही, घडले ते नको आहे,
घडण्याला फक्त घडणेच माहीत, 'हवे नको' नको आहे
अरुण






.....अन्यथा सबकुछ निरर्थक
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हालाँकि बचपन से ही एक बात सुनते-पढ़ते आया हूँ ।
Health is wealth, मनुष्य भले ही यह बात स्वीकार करे,
उसके ह्रदय की गहराई को यह बात छू नही पाती, क्योंकि
उसका मन अनेक अनेक विषयों को महत्व देने लगता है।
देश, धर्म, चरित्र, पारंपरिक संपदा, विकास,शिक्षा....... एेसी कई बातें....
इधर कुछ दिनों से अस्वस्थ हूँ ।
और इस बात का अब पूरा एहसास ( या कहें की तत्व से ज्ञान हुआ है।)
हो चुका है के कि अगर स्वास्थ्य ठीक हो तो ही आदमी दुसरी बातें सोचे
अन्यथा सबकुछ निरर्थक।
अरुण

गति तो हो पर दुर्गति नहीं
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हमारी रोजाना की जिंदगी किन्ही
तात्कालिक इच्छाओं या/और लम्बे स्पष्ट -अस्पष्ट इरादों की
दिशा में बढती रहती है, या यूँ कहें उस दिशा में
खिंची जा रही होती है.
इसतरह से धकेली गई या खिंची जा रही जिंदगी
में तनाव, चिंता, भय, स्पर्धा, इर्षा, संघर्ष, द्वेष,
मतलबी नजदीकी आदि बातों का होना स्वाभाविक ही है.
इच्छाओं और इरादों की पूरी की पूरी प्रक्रिया
को साक्षीभावसे  (बिना स्वीकार या नकार के) जो देख रहा होता है
उसकी जिंदगी में गति तो है पर कोई दुर्गति नहीं
-अरुण    

गौर करें !
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ध्यान चला जाता है हमेशा अभाव की तरफ
'जो है'- उसका ध्यान ही नही रहता
- अरुण
सच्ची बात
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सकल चेतना एक ही है,
सभी की एक ही एक,
एक ही सर्वव्याप्त प्रवाह है
जो सब में से होकर
सभी दिशाओं में बहता रहता है
परंतु हरेक व्यक्ति
उसके अपने मस्तिष्क से होकर  जो मिक्शचर बह रहा है
उस मिक्शचर को अपनी व्यक्तिगत सत्ता मान बैठा है
अरुण

स्पष्ट अभिव्यक्ति  के लिए ही अधिकाधिक शब्दों
बनते जाते होती हैं।
जब कि अनुभूति के स्तर पर शब्दोंकी आवश्यकता ही नही होती।
'इच्छा' की प्रतीति में  स्व का भाव है, भय है,
विश्वास करने की वृत्ति है, संघर्ष की संभावना है,
द्वैत से जन्में सभी विकारों को दर्शाने वाले शब्दानुभव हैं ।
जिस मस्तिष्क  को केवल आवश्यकता का बोध हो, इच्छा का मोह नही,
वह मस्तिष्क भ्रममुक्त होगा।
अरुण
एक शेर
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झूठ के साये ही.... अच्छे लग रहे हैं जिंदगी को
सच की बातें मन को बहलाने में काम आती यहाँ
अरुण

यह बात तो अब टीवी चेनल्स भी समझ गए हैं
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संकट  निवारण या  टालन के या सफलता का आश्वासन  देनेवाले
मन- समझाऊ उपायों का बाजार  हमेशा ही गरम रहता आया है और रहेगा ।
जबतक  सांसारिक प्रपंच  में उलझा चित्त  पृथ्वीतल पर जिंदा है,
इन उपायों के लिए ग्राहकों की कोई कमी नहीं रहनेवाली,
यह बात तो अब टीवी चेनल्स भी समझ गए हैं
ज्योतिष्य, ग्रहमान,  टोटके व निर्मल बाबा ब्रैंड वाले कई कमर्शियल्स में
चैनलों की रुचि दिनोंदिन बढ़ रही है।
अरुण

एक जीवनोपयोगी दृष्टान्त
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किसीने सूचित किया
 “सेठजी घोडागाडी पर सवार होकर बाजार जा रहे थे.”
इस सूचना में निहित तथ्य हैं –
सेठजी का प्रयोजन बाजार जाने का था
गाडीवान सेठजी के आदेश का पालन कर रहा था
घोडा गाडीवान के लगाम-सकेतों के अनुसार अपनी दिशा और गति संवार रहा था
घोड़े के कदम घोड़े की मस्तिष्क के आधीन होकर काम कर रहे थे
इसतरह सेठजी अपने प्रयोजन से, गाडीवान मिले आदेश से, घोडा लगाम से और घोड़े के कदम घोड़े के मस्तिष्क से संचालित थे. हरेक का संचालक अलग होते हुए भी देखनेवाले की दृष्टि और समझ में सभी – गाडीवान, घोडा और घोड़े के कदम – मिलकर एक ही प्रयोजन की दिशा में संचलित लग रहे थे.
इसीतरह, अहंकार, मन, मस्तिष्क और शरीर मिलकर संचलित होते दिखते हैं, किसी बाजार या काल्पनिक प्रयोजन की दिशा में.
-अरुण





एक शेर
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नादानियों को देखो भागो न जिंदगी से
जन्नत हो जहन्नुम दोनों ही इस ज़मीं पे
अरुण

एक शेर
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परेशानियों की जड़ है मन का जला चिराग़
ख़ुद को ही रौशनी दे  .. ..बाहर न देख पाए
अरुण


एक शेर
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गिन गिन के थक रहा हूँ सागर से उठती लहरें
सागर को सब बराबर क्या लहर क्या समंदर
- अरुण
It is the individual, who is eager to understand the Universe. Universe is not aware of any individual or individuality
अरुण

भ्रमित, संभ्रमित, पंडित और तत्व-स्पर्शी
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जो भ्रमवश अज्ञानी हैं.....
डोरी को साँप  समझते हैं और भयभीत हैं ।
कुछ ऐसे हैं जो देख रहे हैं कि
यह डोरी ही है, फिरभी संभ्रमवश साँप होने की आशंका से भयभीत हैं,
कुछ साँप  और डोरी के भेद का सही सही विश्लेषण कर सकते है –
वे वैज्ञानिक, पंडित या दार्शनिक हैं
और जो यथार्थ से जुड़े रहकर डोरीपनही में डूबे हुए
डोरी को देख पा रहे हैं - वे तत्व-स्पर्शी हैं
-अरुण

एक शेर
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पत्ते का पेड से क्या रिश्ता हुआ, वे सोचें
जिनको ख़बर नही के पत्ता भी पेड़ ही है
अरुण









अस्तित्व –
खयाल-ए-इन्सा की अमानत नहीं
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जगत या अस्तित्व मनुष्य की व्याख्याओं,
उसकी गढ़ी परिभाषाओं से नहीं चलता
और न ही (जैसा की आदमी सोचता है)
अस्तित्व कहीं से आता है और
न ही कहीं जाता है, वह न बढ़ता है और
न घटता है।
मनुष्य की अपनी समझ ने
अस्तित्व को बढ़ते –घटते, आते जाते,
बदलते हुए देखा है
पर अस्तित्व हमेशा ही इन सब बातों से परे
अपने में ही स्थित है, अपने में है चालित है,
अपने में ही बढ़घट या बदल रहा है
न उसे किसी अवकाश का पता है
और किसी काल का
-अरुण

जब दीवार ढहेगी तब ...
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भीतर प्रकाश कायम है, लाना नहीं है,
फिर भी आदमी अदिव्य (unenlightened) क्यों है?
क्योंकि कल्प-सामग्री (image-material) से बने ज्ञान-समझ-अहंकार की
दीवार ने प्रकाश को उसतक पहुँचने से रोक रख्खा है,
जब दीवार ढहेगी तब ....
दिव्यत्व जागेगा
-अरुण  
एक शेर
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है ख़ुदही एक उलझन दुनिया को कोसता है
ये आदमी है.............. आदम से रो रहा है
अरुण














एक शेर
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पेड़ की छांव को लटके हुए फल खा खा कर
क्या कभी भूक जिंदगी की मिटा पाया कुई?
अरुण

एक शेर
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बह जाना चाहता हूँ सहज जिंदगी की धार में
ये वज़न मेरा मुझे साहिल तक आने नही देता
- अरुण

एक शेर
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सोच छोटी है, टूटी हुई है, है मालूम,
फिरभी, आदमी पूरा समझना चाहता है

(सत्य को जानने में एक परेशानी है ।
शेर उसी को बयां करता है।)
अरुण

धरा सत्य आकाश एक कल्पना सी.....
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धरा सत्य आकाश एक कल्पना सी
क्षितिज तो अनूठा मिलन नभ धरा का
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यहाँ साँस जीना मगर आस माया
मनु से उसीकी लिपटती है छाया
खुले नैन जिनमे सपन हैं प्रवासी
धरा सत्य ..........
**
उठो पंख लेकर धरो ध्यान धारा
क्षितिज से भ्रमों पर भ्रमण हो तुम्हारा
धरो नित्य अवधान जो साधना सी
**
धरा सत्य आकाश एक कल्पना सी
क्षितिज तो अनूठा मिलन नभ धरा का
-अरुण
एक शेर
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कोशिशों में शोर है.. ना शांति की कोई उमीद
फेंक कंकड़ झील में .....ना रोक पाओगे तरंग
अरुण


एक शेर
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खुदा होगा अगर कहीं हंस रहा होगा
इंसान की सोच पर तरस रहा होगा
अरुण
एक शेर
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हांथ छोटे, पांव छोटे, कुल पकड सकता नही
समझ में यह आ गया है,अब नही कोई गिला
अरुण

गुरू
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अँखियाँ अंदर जोड़ दे.... वह तेरा गुरू होय ।
गर अँखियाँ गुरू से जुड़ीं अंदर का सत खोय ।।
अरुण

एक शेर
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ख़ुशी जागी.. न बतलाए....वजह क्या है
ख़ुशी में डूबने वाला ख़ुशी ही बन चुका है
अरुण

एक शेर
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एक ही साँस में सच चल पड़े...और माया भी
जिस्म का पेड़... तो मन की तिलस्म छाया भी
अरुण
दोस्त
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सारे अपनों में ये अधिक अपना
दिल के पास है एक भरोसा सा
अरुण

एक दोहा
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आँखों से ना सुन सको, कानों से ना देख
शब्दों से क्या जानना, परम मौन आवेग
अरुण

एक शेर
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अंधेरे की चमक में ही, जी रही ये जिंदगी
हकीकत और सच्चाई से ......कोसो दूर है
अरुण


एक दोहा
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जड, पत,डाली और फल- ..सभी पेड़ ही पेड़
अलग अलग कर जानते, सभी, सिवा बस पेड़
अरुण

एक शेर
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काग़ज़ की नाव चाहे समंदर पे सैर करना
कुछ ऐसी ही...... बंदे के ज़हन में उमंग है
अरुण
समझने जानने की ....
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समझने जानने की
आदत-ओ-हवस ने
रोक रख्खा है हमें
यह देखने से कि
हम भी तो एक चीज हैं, बीज हैं,
पल पल घटती घटना की एक तसबीर हैं
जिसे बाहर झांकने और जानकारी बटोरने
में ही मजा आता है
अरुण
आदमी और उसका भीडपन
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आदमी अपनी सुरक्षा के लिए
अपनी भीड़ बनाकर रहने लगा,
उस भीड़ ने अपना ‘भीड़पन’
सुरक्षित रखने के लिए आदमी में से
उसका ‘आदमीपन’ निकालकर
उसे एक मशीनी पुर्जा बना डाला.
अब दोनों, आदमी और उसकी भीड़,
एक दूसरे का इस्तेमाल करते
दिखते हैं
-अरुण

एक सच
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हवा पर खिंची हैं हवा की लकीरें
ये मुद्दत गँवाई मगर मिट न पाई
नज़र भर के देखो ये सारा तमाशा
ये किसने बनाई और किसने मिटाई ?
- अरुण















जहाँ से चल पड़ा वही था ठिकाना मंजिल
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जहाँ से चल पड़ा वही था ठिकाना मंजिल
भटक चुका है आदमी समाज में गिरते
नये नियम समाज ने जो उसको बांधे हैं  
वे नियम, दूर निकल जाने के ही काम आते

उन्ही नियम से आदमी, गर तलाशे मंजिल
कैसे पाएगा उसे दूर निकल जाएगा
उलट जो चल पड़े, जहाँ से चल पड़ा था कभी
वही मंजिल  पे सही हाल में लौट आएगा
-अरुण

एक शेर
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जब अचानक सामने ख़तरा उभर आये
तबही होती कारवाई, सोचना होता नही
अरुण

एक सच
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जहाँ धूप पहुँची नही.. वह छाया है
उसको सच मान लेना ही.. माया है
अरुण
एक सच
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जाननेवाला अधूरा जानता है
जागनेवाले को सारा दिख रहा
अरुण

एक शेर
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खुदा कहें तो कहें किसको?... संजीदा तलाश
इसी तलाश में शायद...... खुदा से हो पहचान
अरुण
एक शेर
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दूसरे का क्या भरोसा सत्य अपने में ही देखो
इल्म ऐसा जो के ......सिखलाया नही जाता
अरुण




देश का बस नाम लेती
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देश का बस नाम लेती
उल्लु  सीधा करती अपना
पार्टियाँ ये राजनीति की बडी चालाक हैं
अपने पापों को छुपाना
दोष रखना दूसरों पर
अपनी छबि को शुभ्र करने में बडी निष्णात हैं
अरुण

आज स्वतंत्रता दिवस.....
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
सभी देशवासियों को मुबारक....
इन शुभकामनाओं के साथ कि
देश का जनतंत्र ऐसी ऊंचाईंयों को छू ले
जहाँ सत्ताधारीययों को सत्ता का मद न हो
विपक्ष को मतलबी असहयोग का रोग न हो
लोग एक भीड़ का हिस्सा बनकर वोट न करें
मतदाताओं के पास अपना व्यक्तिगत
राजनैतिक मत रचने की क्षमता हो ताकि वे
किसी 'हवा' का शिकार न बन सकें
अरुण

एक विनम्र सुझाव
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अब तक तो आप उनकी बेईमानियों का
ज़िक्र करते रहे क्योंकि आप को जीतना था
अब जीतकर भी आप......वही  सब दुहराए चले जा रहे हो.....
ये तो बेईमानी है
लोग आपकी कारगुज़ारीयों को देखना चाहते हैं
पहले जो भी हुआ....उसका जवाब तो वे ख़ुद ही दे चुकें हैं
आप अपना समय जाया न करें.. काम में लग जाएँ
अरुण



एक  शेर
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तमन्नाओं ने जिंदगी मुश्किल कर दी
चाह पे अड गई... हवस पैदा कर दी
अरुण
एक शेर
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जो तुम हो...... गर वही चाहते हो हो जाना
फिर किधर जाना, क्या पाना, क्या खो देना?
अरुण

एक शेर
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दिलासा दे नही पाई ख़ुशी क्या काम की वह
ख़ुशी के पार जाने पर मिला करती तसल्ली
अरुण

बिदाई की घड़ी आते .........
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बिदाई की घड़ी आते.. तुम्हें ही रोना आता है ?
हमारे दिल ने भी हर दर्द का एहसास जाना है
शिकायत है अगर तुझको हमें रोना नही आया
तो मतलब तुझको मेरे दिल की गहराई को पाना है

मै जानता हूँ ......तुमने अश्कों को दबाया था
लबों पे मुस्कुराहट की लकीरें ही बनाई थी
तुम्हारे दिल में जो उभरी हुई थी सख़्त बेचैनी
छुपाओ लाख.. फिर भी तेरे चेहरे पर समाई थी

बेचारा दिल मुहब्बत की बडी उलझन सम्हाले था
के तेरी उलझनों को देखकर मुश्किल न हो जाए
के औरों से बचाकर जिसको ख़ामोशी में ढाला है
वही उल्फत कहीं अश्कों में ढल ज़ाहिर न हो जाए

गर कहती हो तो तेरे अश्क़ का हर्ज़ाना भर दूँगा
मगर ये शर्त है मुझको कभी भी याद ना लाना
अगर एहसास हो जाए कि तुमने याद लाया था
ख़ुशी से झूम अपने अश्क़ को अनजाना कर दूँगा
अरुण

एक शेर
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क़ुदरत को जो मिली है वैसी नज़र को चूके
इंसान अपनी हद से बाहर निकल न पाया
अरुण

एक शेर
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जो बयां करते नज़ारा... लफ़्ज़ कहलाते मगर
आँख को जो खोल देते लफ़्ज़ से बढ़कर हुए
अरुण
एक शेर
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आदतें मजबूर हैं ..........झूठ को सच मान लेतीं
बंद आँखों को दिखा जो भी.. उसे सच मान लेतीं
अरुण

एक शेर
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चाँद को भी .............खोज लेता है इरादा
यह इरादा जागे कैसे, खोज असली है यही
अरुण

एक प्रेम गीत
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न शरमाओ हमारे गीत पढ़कर
तुम्हारी साद इसमें है.. ..तुम्हारा प्रेम इसमें है
तुम्हारे रूप-मदिरा का मधुरतम जाम इसमें है
गवांता ही गया मै ख़ुद को ऐसे गीत गढ़कर
न शरमाओ....

तुम्हारी लाज को पाकर भरी हर आह इसमें है
तुम्हारे संग जीने की .....बनी हर चाह इसमें है
सजाये याद के मोती, इन्हीं गीतों में जड़कर
न शरमाओ ....


तुम्हारे और मेरे जज़्ब की ...........तस्वीर इसमें है
इन्हीं दो दिल को.. जो जकड़े वही ज़ंजीर इसमें है
हँसी-आँसू ..मोहब्बत के ......गिराये इसमें खुलकर
न शरमाओ हमारे गीत पढ़कर
अरुण

एक शेर
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नातों रिश्तों की ज़रूरत को निभाता.. ये दिमाग़
रुहानी सांस की वह पहली झलक भूल गया
अरुण
एक शेर
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नही है एहसास अपनी नाकाबिलियत का..सही माने में
यही वजह के .................उछलकूद अभी भी जारी है
अरुण

रुबाई
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जितनी हो कशिश तेरे मेरे दरमियाँ
अल्फ़ाज़ भी उतने ही गरम होते हैं
मिलन से ख़त्म हुई जाती है हर दूरी
दौर जज्बों के उतने ही नरम होते हैं
अरुण
एक शेर
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परसों क़रीब डेड घंटे general anaesthesia के प्रभाव में रहा।
बाद में यह सूझा कि.....
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जहां में रहते हुए भी न कुछ भी जान सका
यही तो मौत थी मेरी इसके सिवा और क्या था?
अरुण

एक शेर
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जिंदगी चलती है अपले आप, ......न चलाता कोई
यह सोच कि चलाता मै हूँ, सिरफ है इक सोच कोई
अरुण

एक शेर
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किसी भी बात का हो ज़िक्र या कोई याद आए
हम अपनी मौजूदगी को ......न कभी भुला पाए
अरुण

संत भी संसारिकताजन्य मनोविकारों के शिकार
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सभी मनोविकार, माया-मोह (मूल-भ्रम) की ही संताने हैं।ये विकार संतत्व-प्राप्त लोगों को भी खा जाते हैं।उनका मोह दिखने में भले ही अलग दिखता हो पर स्वभावतः  मोह ही होता है......
संत के इर्दगिर्द जमा होनेवाली भीड़,बड़ी तादाद में आनेवाला चढ़ावा, मिलनेवाला राजशाही सन्मान, बढती संगठन शक्ति ....ऐसी कई बातें उनके संतत्व को खा जाती है, और वह भी छुपी तर्ज में अहं-गीत गाने लगता है।
जिन्हें ऐसे लोगों पर अपनी भक्ति जताना, एक सुरक्षा-उपाय या गौरवपूर्ण कार्य प्रतीत होता है,  वे उन संतों के अहं को खुराक देते रहते हैं
-अरुण
एक शेर
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अपनी जगह से हटके सिरफ सोचना बना
अपनी जगह रहा......उसीसे देखना हुआ
(सोचना विकल्प नही है..देखने का )
अरुण
एक शेर
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( मंजिल एक फिर रास्ते अलग अलग क्यों?)

जो जहाँपर था वहीं से चल पड़ा फिर घाट पहुँचा
घाट जो नज़दीक..उसकी सीढ़ियाँ से उतर पाया
अरुण
इस कथन पर ग़ौर करें
*********************
आदमी मरता नही है ......आदमी के रूप में मरता भले हो
दूरियाँ होती नही हैं.. कालपथ धर आदमी चलता भले हो
- अरुण


इस कथन पर ग़ौर करें
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आदमी स्वयं जिसकी गोद में है.. उसे ढूँढने के लिए वह
अपने से बाहर निकल पड़ता है और अपने ही रचे रास्तों पर
भटकता रहता है
अरुण

आजकल राजनीति के अखाड़े में ' विकास' (इस शब्द का) उच्चार/ घोषणा/दावा बड़े धड्डले से होता दिख रहा है । इस फॅशनेबल शब्द के जाल से मतदातागण को बचना होगा। इस शब्द का विस्तृत आशय हरेक के दिमाग़ में अलग अलग हो सकता है । किसी वर्ग या समूह विशेष की आज़ादी का शोषण करते हुए भी देश को बलशाली और तथाकथित रूप से विकसित किया जा सकता है। विकास का नाम लेकर जन-आज़ादी का बली देनेवाले और वोटों के लिए आरक्षण की पहल कर देश को कमज़ोर करनेवाले, दोनों ही एक ही श्रेणी के विचार हैं।

परंतु मीडिया अगर सशक्त व तटस्थ होगा तभी लोगों को विकास का सही आशय समझाने की प्रक्रिया चालू रह सकती है।

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