21 0ctober
एक शेर
**********
हालात-ओ-तजुरबात के चेहरे.... अलग अलग
आदमी तो एक ही है जो लगता.... जुदा जुदा
अरुण
फूल और प्रेम
*************
भले ही फूल किसी खास टहनी से
जुड़ा लगता हो,
उसकी सुगंध
परिसर के कण कण में घुल जाती है..
मगर आदमी का प्रेम
अपनों तक ही
सिमटकर रह जाता है
-अरुण
मुक्ति
************
पिंजड़े का पंछी
खुले आकाश में आते
मुक्ति महसूस करे
यह तो ठीक ही है
परन्तु अगर
पिंजड़े का दरवाजा
खुला होते हुए भी
वह पिंजड़े में ही बना रहे और
आजादी के लिए प्रार्थना करता रहे तो
मतलब साफ है....
आजादी के द्वार के प्रति वह
सजग नही है
वह कैद है
अपनी ही सोच में
अरुण
मृत्यु
*******
मृत्यु को लेकर
बहुत अधिक गूढगुंजन करना
व्यर्थ है।मृत्यु भी एक प्रकार की
गाढ़ी नींद ही है।
गाढ़ी नींद हो या पूरी बेहोशी ...
अगर प्राणी प्राणडोर से बँधा हो तो
उसके जागने की संभावना बनी रहती है।
प्राण निकल गये हों तो अन्य उसे
मृत हुआ जान लेते हैं।
मतलब यह कि...
गाढ़ी नींद या पूरी बेहोशी...दोनोंही,
पुन: जागने की संभावना से युक्त,
मृत्यु की ही अवस्थाएँ हैं।
अरुण
अस्तित्व की अस्तित्वता
***********************
अस्तित्व की क्षमताएं एवं
अंतर-व्यवस्था हर हाल में ,
एक जैसी ही रहती है,
चाहे मनुष्य अस्तित्व को
मायावी ढंग से उपयोग में लाए या
स्वयं अमायावी अवस्था में रहकर
उसमें रम जाए।
फूल चाहे जंगल में डोले
या छत के गमले में
उसकी महक एक जैसी ही
फूलती-बहरती है।
अरुण
एक शेर
*******
बला का वक़्त है ये... बक रहे सब जो जुबां चाहे
सभी खिलवाड़ करते दिख रहे हैं.... राष्ट्र गरिमासे
अरुण
एक शेर
*********
ध्यान चूका.. ढल गई इक नींद..मैं वह नींद हूँ
जागने के देखता हूँ खाब............सारी उम्रभर
- अरुण
**********
हालात-ओ-तजुरबात के चेहरे.... अलग अलग
आदमी तो एक ही है जो लगता.... जुदा जुदा
अरुण
फूल और प्रेम
*************
भले ही फूल किसी खास टहनी से
जुड़ा लगता हो,
उसकी सुगंध
परिसर के कण कण में घुल जाती है..
मगर आदमी का प्रेम
अपनों तक ही
सिमटकर रह जाता है
-अरुण
मुक्ति
************
पिंजड़े का पंछी
खुले आकाश में आते
मुक्ति महसूस करे
यह तो ठीक ही है
परन्तु अगर
पिंजड़े का दरवाजा
खुला होते हुए भी
वह पिंजड़े में ही बना रहे और
आजादी के लिए प्रार्थना करता रहे तो
मतलब साफ है....
आजादी के द्वार के प्रति वह
सजग नही है
वह कैद है
अपनी ही सोच में
अरुण
मृत्यु
*******
मृत्यु को लेकर
बहुत अधिक गूढगुंजन करना
व्यर्थ है।मृत्यु भी एक प्रकार की
गाढ़ी नींद ही है।
गाढ़ी नींद हो या पूरी बेहोशी ...
अगर प्राणी प्राणडोर से बँधा हो तो
उसके जागने की संभावना बनी रहती है।
प्राण निकल गये हों तो अन्य उसे
मृत हुआ जान लेते हैं।
मतलब यह कि...
गाढ़ी नींद या पूरी बेहोशी...दोनोंही,
पुन: जागने की संभावना से युक्त,
मृत्यु की ही अवस्थाएँ हैं।
अरुण
अस्तित्व की अस्तित्वता
***********************
अस्तित्व की क्षमताएं एवं
अंतर-व्यवस्था हर हाल में ,
एक जैसी ही रहती है,
चाहे मनुष्य अस्तित्व को
मायावी ढंग से उपयोग में लाए या
स्वयं अमायावी अवस्था में रहकर
उसमें रम जाए।
फूल चाहे जंगल में डोले
या छत के गमले में
उसकी महक एक जैसी ही
फूलती-बहरती है।
अरुण
एक शेर
*******
बला का वक़्त है ये... बक रहे सब जो जुबां चाहे
सभी खिलवाड़ करते दिख रहे हैं.... राष्ट्र गरिमासे
अरुण
एक शेर
*********
ध्यान चूका.. ढल गई इक नींद..मैं वह नींद हूँ
जागने के देखता हूँ खाब............सारी उम्रभर
- अरुण
Comments