29 0ctober

अपने चित्तपर व्यापक ध्यान जाते दिखे
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चित्त है....... चित्र की तरह विचित्र
अलग अलग प्रतिमाएँ...
एकही स्याही है।
एकही धरातल पर चित्र बने..
दिखे कहीं पर्वत तो
दिखे कहीं खाई है।
अरुण
कुछ शेर
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हटा जब मोह बाहर का, खुले इक द्वार भीतर में
पुकारे खोज को कहकर- यहाँ से बढ़, यहाँ से बढ़

भरी ज्वानी में जिसको जानना हो मौत का बरहक*
उसी को सत्य जीवन का समझना हो सके आसाँ

जिसम पूरी तरह से जानने पर रूह खिलती है
'कमल खिलता है कीचड में' - कहावत का यही मतलब

ख़याल भरी आँखों से............. मै दुनिया देखूं
तो दुनिया दिखे ......................ख़यालों जैसी

अँधेरे से नहीं है.............. बैर रौशनी का कुई
दोनों मिलते हैं तो रौनक सी पसर जाती है

बरहक = सत्य, * सिद्धार्थ (भगवान बुद्ध) के बारे में
- अरुण
एक शेर
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एकही वक़्त.. कई सतह पे जीनेवाला
आदमी ख़ुद में खुदा और खुदाई भी है
- अरुण

ग़ौर करें
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किसी को याद  करना फिर उसीको भूल जाना
वजह येके.......नयीही सोचका दिल में उभरना
कोई भी सोच..........अपनेआप में पूरी नही है
यही वो सत्य जिसको दिल की गहराई से छूना
- अरुण

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