मनरुपी जहाज
सागर की लहरों पर एक तैरता जहाज
और जहाज के डेक पर आदमी की बस्ती –
इस बस्ती में अशांति है
आदमी आदमी के बीच झगडा है,
वादविवाद है
परन्तु इससे सागर में कोई आन्दोलन पैदा नही होता
परन्तु यदि झगडा इस स्तर पर पहुंचे कि
युद्ध शुरू हो जाए,
एक दूसरे पर बमबारी होने लगे और
सारा जहाज ही डगमगाने लगे तब शायद
सागर की लहरों में उफान जैसा आन्दोलन होने लगे
पर हर स्थिति में सागर को कई फर्क नही पडता
सागर एक त्रयास्थ की तरह सारा तमाशा निहारता रहेगा
ठीक इसी तरह –
अस्तित्व के सागर में
देह की लहरें हैं और इन लहरों पे
मानवीय मन एक जहाज की तरह
तैर रहा है
अपने भीतर विचार-स्वप्नों की
एक बस्ती लिए
........................................................ अरुण
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खासकर इन पंक्तियों ने रचना को एक अलग ही ऊँचाइयों पर पहुंचा दिया है शब्द नहीं हैं इनकी तारीफ के लिए मेरे पास...बहुत सुन्दर..