दो रचनाएँ आज के दिन
दर्शक और दुनिया
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दर्पण हो पर
उसमें प्रतिबंब न दिखे
तो फिर वह दर्पण नही है
दुनिया हो मगर
उसे देखनेवाला न हो
तो फिर वह दुनिया नही है
हरेक दर्शक अपनी दुनिया
अपने साथ लेकर आता है
और अपने ही साथ लेकर जाता है
-अरुण
एक शेर
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तमाशा ही तमाशा है न कोई भी तमाशाई
नज़र भी है नज़ारा…है सृजन इस सृष्टि का
-अरुण
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दर्पण हो पर
उसमें प्रतिबंब न दिखे
तो फिर वह दर्पण नही है
दुनिया हो मगर
उसे देखनेवाला न हो
तो फिर वह दुनिया नही है
हरेक दर्शक अपनी दुनिया
अपने साथ लेकर आता है
और अपने ही साथ लेकर जाता है
-अरुण
एक शेर
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तमाशा ही तमाशा है न कोई भी तमाशाई
नज़र भी है नज़ारा…है सृजन इस सृष्टि का
-अरुण
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