पंछी और पिंजड़ा
पंछी चाहे पिंजड़े की पकड से छूटना, यह बात सही सहज स्वाभाविक है, परंतु जिस क्षण पंछी का अपने भीतर फड़फड़ाना पिंजड़े के लिए कष्टदायी बने, आदमी उसी क्षण की तलाश में बेचैन है क्योंकि आदमी अपने को कभी पंछी समझता है तो कभी पिंजड़ा.. यह देख ही नही पाता कि वह स्वयं पंछी भी है और पिंजड़ा भी.... -अरुण