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Showing posts from April, 2017

पंछी और पिंजड़ा

पंछी चाहे पिंजड़े की पकड से छूटना, यह बात सही सहज स्वाभाविक है, परंतु जिस क्षण पंछी का अपने भीतर फड़फड़ाना पिंजड़े के लिए कष्टदायी बने, आदमी उसी क्षण की तलाश में बेचैन है क्योंकि आदमी अपने को कभी पंछी समझता है तो कभी पिंजड़ा.. यह देख ही नही पाता कि वह स्वयं पंछी भी है और पिंजड़ा भी.... -अरुण

मुक्तक

मुक्तक ****** आकार देख पाया नही .........निराकार को नाम दे सको न कभी तुम.........अनाम को धुरी नही हो ऐसा कोई...... चक्र भी कहाँ इच्छा करे ना.. ऐसा कोई मन नही कहीं -अरुण

मुक्तक

मुक्तक ******* डूबजाना समंदर में... है लहर की फ़ितरत 'आगे क्या?'- यह सवाल भी साथ में डूबे मोक्ष मुक्ती की करो ना बात अभ्भी बंध बंधन का...समझ लो...बस बहोत है न ही उम्मीद कुई और न ही मै हारा हूँ पल पल की जिंदगी ही.. अब जिंदगी है -अरुण

March 2017

मुक्तक ******* हाँ..ना.. में दिया जा सके.... जिंदगी ऐसा जवाब नही कोई रखे हिसाब इसका.... जिंदगी ऐसा हिसाब नही अनगिनत हैं अक्षर यहाँ  ............. अनगिनत तजुर्बे हैं जिंदगी कुछ जाने पहचाने अक्षरों की..... किताब नही -अरुण मुक्तक ******** जीने की तमन्ना ने बाँटी सारी दुनिया दो हिस्सों में जो इधर हुआ अपना हिस्सा जो उधर बचा सारा जहान -अरुण अभी यहाँ कल ही कल ********************** अभी यहाँ जो भी है.... आँखों के सामने देखता उसको तो.. जो कल है बीत चुका अभी यहाँ सपने भी..... आनेवाले.. कल के कल तो बस कल ही है.. आये या ना आये -अरुण एक शेर ******** इधर इसका जले इतिहास....... तो जलता उधर उसका धुआँ और आग तो सबकी..... नही इसकी नही उसकी -अरुण चेतना का काम है चे.त.ना ..जब चेतती है हर एक के बीते हुए अनुभवों को,  याद के रूप में चेताती है।अनुभवों में व्यक्तिगत भिन्नता होने के कारण, लगता यूँ है कि हरेक के भीतर जलती चेताग्नि .. दूसरों के चेताग्नि से भिन्न है..।  सच तो यह है कि सबकी चेतना की आग और यादों का धुआँ तो common ही है। जबतक अंतरदृष्टि न चौंधे **********...

बोधिवृक्ष

बोधिवृक्ष ******* “आँगन में यहाँ जो वृक्ष खड़ा है कहना गलत नही कि वह इस सूबे.. पृथ्वी.. सारे ब्रह्म में खडा है” यह तथ्य एक सत्यबोध बनकर जिनके ह्रदय में उतरा होगा उनके लिए वह वृक्ष... केवल वृक्ष नही एक बोधिवृक्ष बन गया होगा -अरुण

March 2017

मुक्तक ******* हाँ..ना.. में दिया जा सके.... जिंदगी ऐसा जवाब नही कोई रखे हिसाब इसका.... जिंदगी ऐसा हिसाब नही अनगिनत हैं अक्षर यहाँ  ............. अनगिनत तजुर्बे हैं जिंदगी कुछ जाने पहचाने अक्षरों की..... किताब नही -अरुण मुक्तक ******** जीने की तमन्ना ने बाँटी सारी दुनिया दो हिस्सों में जो इधर हुआ अपना हिस्सा जो उधर बचा सारा जहान -अरुण अभी यहाँ कल ही कल ********************** अभी यहाँ जो भी है.... आँखों के सामने देखता उसको तो.. जो कल है बीत चुका अभी यहाँ सपने भी..... आनेवाले.. कल के कल तो बस कल ही है.. आये या ना आये -अरुण एक शेर ******** इधर इसका जले इतिहास....... तो जलता उधर उसका धुआँ और आग तो सबकी..... नही इसकी नही उसकी -अरुण चेतना का काम है चे.त.ना ..जब चेतती है हर एक के बीते हुए अनुभवों को,  याद के रूप में चेताती है।अनुभवों में व्यक्तिगत भिन्नता होने के कारण, लगता यूँ है कि हरेक के भीतर जलती चेताग्नि .. दूसरों के चेताग्नि से भिन्न है..।  सच तो यह है कि सबकी चेतना की आग और यादों का धुआँ तो common ही है। जबतक अंतरदृष्टि न चौंधे **********...