मन की तरंग

परम-वास्तव
सभी वास्तविकताओं को जानना तथ्य को जानना है
वास्तविकताओं की परम वास्तविकता को समझ के भीतर उतारना
सत्य से साक्षात्कार है
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संख्या का जन्म
संख्याएँ केवल दो ही हैं - 'उपस्थिति' एवं 'अनुपस्थिति'
'होना' एवं 'न होना'
'होंने' की गणना से संख्या की संकल्पना पैदा हुई
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प्रज्ञान
वास्तव एवं कल्पना का मिश्रण है यह संसार
इस मिश्रण से वास्तव एवं कल्पना को (अपनी समझ में)
अलग अलग कर देख लेने को
प्रज्ञान कहते हैं
मिश्रण में ही रम जाने को अज्ञान कह सकते हैं
.................................................................... अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
सही ज्ञान!

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