केवल एक ही प्रक्रिया- आभास कई

जानने की प्रक्रिया के भीतर ही

‘जाननेवाला’ और ‘जाना गया’

दोनों का अस्तित्व आभासित होता है

जैसे ‘तुम’ का विचार करो तो ‘मै’ और

‘मै’ के बारे में सोचो तो ‘तुम’ की सोच उभरनी

अवश्यंभावी है

मस्तिष्क में एक ही क्रिया होती है

जानने की परन्तु

आभासरूप में कई पात्र सजीव हुए जान पड़ते हैं

ऐसे ही आभासों से मुक्त होने की कोशिश

आदमी सदियों से करता आया है

परन्तु कोई बिरले बुद्ध ही ऐसा कर पाए

............................................................ अरुण

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के