१ मार्च २०१६
एक शेर
*********
बहते पानी से निकल आते हैं किनारे दो
सोच बहती तो.. सोच-ओ-सोचनेवाला
अरुण
एक शेर
*********
रफ्तार से दौडती गाडी...उठता है बवंडर जिससे
सोचता....ये जो रफ़्तार है गाडी में.. ...है उसीसे
अरुण
एक शेर
*********
खुदमें में बैठे देखूँ दुनिया.....ख़ुद को देखूँ
दुनिया बैठे देखूँ............तबतो दिखे खुदा
अरुण
एक शेर
*******
गीता और क़ुरान में जो भी लिख्खा ग़ौर करो
किस काग़ज़ पर लिख्खा इसका ख़्याल न कर
अरुण
एक शेर
*******
अपना ये.. पराया वो...यही इंसान की फ़ितरत
भला है के.. नही कुदरत ने थामा...... ये रव्वैया
अरुण
एक शेर
*******
अपनी सूरत आइने में हूबहू...लगती भले
पर सभी अपने ही चेहरे पर लगाते पावडर
अरुण
एक मुक्तक
*************
नही जबतक जगा हो चित्त 'अर्जुन' का
उसे हर 'कृष्ण' की बातें लगें बेबुझ, कठिन अचरन
हज़ारों प्रश्न पूछे सुलझने के वास्ते, मुर्छा
मगर जागे हुए की बात तो.....उसके लिए उलझन
अरुण
एक शेर
*******
चकाचौंध है मन-प्रकाश की इतनी गहरी
भरी दुपहरी भी.....अँधियारासा लगता है
अरुण
एक शेर
*********
मै, मेरे, मेरों के मेरे.....और क्या इस ज़हन में ?
वो जगह बतला जहाँ ये सब के सब हों लापता
- अरुण
एक मुक्तक
*************
छोटे से ज्ञानकी....... छोटेसी अँखियाँ
कैसे निहारेंगीं ...... दुनिया की दुनिया?
जबसे ये बात...........असर कर गै है
ज्ञान छोड ध्यान से.... देखता हूँ दुनिया
अरुण
एक शेर
********
इस दुकां से उस दुकां तक..... घूमती मेरी नज़र
और 'उसको' एक ही पल....दिख पड़े पूरा बझार
अरुण
एक शेर
*******
जिनके सहारे से............... 'उन्हे' दर्शन हुए सत के
थी 'उनकी' साफ़ नज़रें और ज़हन भी.... साफ़ सुथरा
अरुण
एक शेर
*****
निकलते आंख से आंसू कभी तेरे कभी मेरे
अलहिदा है नही ये गम, ये तेरा हो के मेरा हो
-अरुण
रुबाई
******
पहनावा शख़्सियत का पहनो...उतार दो
आदम से जो मिला है.. उसको सँवार लो
अपने लिबास में ही.... जकड़ा है आदमी
तोड़ों न बेड़ियों को ........ बंधन उतार दो
अरुण
एक शेर
*********
आदमी में आदमी है.....चीज़ तो बेजान है
चीज़ है जो काम आवे... आदमी अरमान है
अरुण
एक मुक्तक
***********
नद धार बहे, सट घाट बहे, बहना ही जीवन का स्वभाव
जाना ना रुकना, बहते ने, स्थिरता ढूंढे वह......मूढ़ भाव
-अरुण
एक शेर
********
मरना ही जिंदगी है.... माजी को होगा मरनाू
हम, मुर्दा जिंदगीके ....... कपड़े बदल रहे हैं
- अरुण
समंदर में मिलाए रखिए
***********************
हो पता सुबह को, कहाँ पे आना है?
अंधेरे में दिया जलाए रखिए
***
परछाइयाँ गर आँखों को सताने लगें
रौशनी पे आँखें गड़ाए रखिए
***
आसमां भी इसमें सिमटना चाह्ता है
मुहब्बत को ऊपर उठाए रखिए
***
किनारे भी टूटेंगे किसी रोज़, आख़िर
तूफ़ाँ को अपना बनाए रखिए
***
आसमां से जो टूटा, नही लौटा, तारा
ये मौज है, समंदर में मिलाए रखिए
- अरुण
२/१२/२००४
एक शेर
*********
बैठकर किनारे न जानो रवानी नदीकी
जो उतर जाए नदी में.... नदी बन जाए
अरुण
रुबाई
******
पांवके नीचे दबा क्या......मैने देखा ही कहाँ
दर्द को..भीतर उतरकर.... मैने देखा ही कहाँ
मै तो दौडे जा रहा.. बस वक्त का रहगीर बन
हर कदम आलम मुसल्लम,मैने देखा ही कहाँ
अरुण
एक शेर
*********
है रास्ता एक ही ..... रौशनी जगाने का
चिराग जलाना और सामने से हट जाना
अरुण
एक शेर
*********
यह जगत टूटा हुआ तो है नही...लगता ज़रूर
और फिर आते निकल.. स्वार्थ,भय,इर्षा,ग़रूर
अरुण
एक शेर
*********
जो सवाल हल करने बैठा मै मुद्दत से
खुदही हूँ............. वो सवाल पेचीदा
अरुण
एक शेर
********
वैसे, धरती और आकाश..... मुझसे कहां जुदा है?
ये फ़ितरत मेरी.........मैंने खुदको जकड लिया है
अरुण
ग़ज़ल
**************************
हज़ारों हैं ...करोड़ों जीव हैं.... पर आदमी जो
समझता है..ये दुनिया है....तो केवल आदमी ही
कहीं से भी कहीं पर .....जा के बसता है परिंदा
मगर पाबंद कोई है..........तो कोई आदमी ही
जभी हो प्यास पानी खोज लेना.. जानती क़ुदरत
इकट्ठा करके रखने की हवस.......तो आदमी ही
बचाना ख़ुद को उलझन से सहजता है यही लेकिन
फँसाता खुद को....बुनता जाल अपना आदमी ही
बदन हर जीव को देता ज़हन..... जीवन चलाने को
चलाता है ज़हन केवल .........तो केवल आदमी ही
खुदा से बच निकलने की ....कई तरकीब का माहिर
खुदा के नाम से जीता ..... .....तो केवल आदमी ही
अरुण
सपनों भरी है जिंदगी
*********************
दिन के सपने
रात के सपनों पे हंसते हैं...और फिर
कब नींद से जा मिलेते हैं -
इसका उन्हें पता ही नही....
रात और दिन की
इस सपनों भरी जिन्दगी ने..
सपनों के बाहर क्या है
इसे कभी जाना ही नही है
-अरुण
*********
बहते पानी से निकल आते हैं किनारे दो
सोच बहती तो.. सोच-ओ-सोचनेवाला
अरुण
एक शेर
*********
रफ्तार से दौडती गाडी...उठता है बवंडर जिससे
सोचता....ये जो रफ़्तार है गाडी में.. ...है उसीसे
अरुण
एक शेर
*********
खुदमें में बैठे देखूँ दुनिया.....ख़ुद को देखूँ
दुनिया बैठे देखूँ............तबतो दिखे खुदा
अरुण
एक शेर
*******
गीता और क़ुरान में जो भी लिख्खा ग़ौर करो
किस काग़ज़ पर लिख्खा इसका ख़्याल न कर
अरुण
एक शेर
*******
अपना ये.. पराया वो...यही इंसान की फ़ितरत
भला है के.. नही कुदरत ने थामा...... ये रव्वैया
अरुण
एक शेर
*******
अपनी सूरत आइने में हूबहू...लगती भले
पर सभी अपने ही चेहरे पर लगाते पावडर
अरुण
एक मुक्तक
*************
नही जबतक जगा हो चित्त 'अर्जुन' का
उसे हर 'कृष्ण' की बातें लगें बेबुझ, कठिन अचरन
हज़ारों प्रश्न पूछे सुलझने के वास्ते, मुर्छा
मगर जागे हुए की बात तो.....उसके लिए उलझन
अरुण
एक शेर
*******
चकाचौंध है मन-प्रकाश की इतनी गहरी
भरी दुपहरी भी.....अँधियारासा लगता है
अरुण
एक शेर
*********
मै, मेरे, मेरों के मेरे.....और क्या इस ज़हन में ?
वो जगह बतला जहाँ ये सब के सब हों लापता
- अरुण
एक मुक्तक
*************
छोटे से ज्ञानकी....... छोटेसी अँखियाँ
कैसे निहारेंगीं ...... दुनिया की दुनिया?
जबसे ये बात...........असर कर गै है
ज्ञान छोड ध्यान से.... देखता हूँ दुनिया
अरुण
एक शेर
********
इस दुकां से उस दुकां तक..... घूमती मेरी नज़र
और 'उसको' एक ही पल....दिख पड़े पूरा बझार
अरुण
एक शेर
*******
जिनके सहारे से............... 'उन्हे' दर्शन हुए सत के
थी 'उनकी' साफ़ नज़रें और ज़हन भी.... साफ़ सुथरा
अरुण
एक शेर
*****
निकलते आंख से आंसू कभी तेरे कभी मेरे
अलहिदा है नही ये गम, ये तेरा हो के मेरा हो
-अरुण
रुबाई
******
पहनावा शख़्सियत का पहनो...उतार दो
आदम से जो मिला है.. उसको सँवार लो
अपने लिबास में ही.... जकड़ा है आदमी
तोड़ों न बेड़ियों को ........ बंधन उतार दो
अरुण
एक शेर
*********
आदमी में आदमी है.....चीज़ तो बेजान है
चीज़ है जो काम आवे... आदमी अरमान है
अरुण
एक मुक्तक
***********
नद धार बहे, सट घाट बहे, बहना ही जीवन का स्वभाव
जाना ना रुकना, बहते ने, स्थिरता ढूंढे वह......मूढ़ भाव
-अरुण
एक शेर
********
मरना ही जिंदगी है.... माजी को होगा मरनाू
हम, मुर्दा जिंदगीके ....... कपड़े बदल रहे हैं
- अरुण
समंदर में मिलाए रखिए
***********************
हो पता सुबह को, कहाँ पे आना है?
अंधेरे में दिया जलाए रखिए
***
परछाइयाँ गर आँखों को सताने लगें
रौशनी पे आँखें गड़ाए रखिए
***
आसमां भी इसमें सिमटना चाह्ता है
मुहब्बत को ऊपर उठाए रखिए
***
किनारे भी टूटेंगे किसी रोज़, आख़िर
तूफ़ाँ को अपना बनाए रखिए
***
आसमां से जो टूटा, नही लौटा, तारा
ये मौज है, समंदर में मिलाए रखिए
- अरुण
२/१२/२००४
एक शेर
*********
बैठकर किनारे न जानो रवानी नदीकी
जो उतर जाए नदी में.... नदी बन जाए
अरुण
रुबाई
******
पांवके नीचे दबा क्या......मैने देखा ही कहाँ
दर्द को..भीतर उतरकर.... मैने देखा ही कहाँ
मै तो दौडे जा रहा.. बस वक्त का रहगीर बन
हर कदम आलम मुसल्लम,मैने देखा ही कहाँ
अरुण
एक शेर
*********
है रास्ता एक ही ..... रौशनी जगाने का
चिराग जलाना और सामने से हट जाना
अरुण
एक शेर
*********
यह जगत टूटा हुआ तो है नही...लगता ज़रूर
और फिर आते निकल.. स्वार्थ,भय,इर्षा,ग़रूर
अरुण
एक शेर
*********
जो सवाल हल करने बैठा मै मुद्दत से
खुदही हूँ............. वो सवाल पेचीदा
अरुण
एक शेर
********
वैसे, धरती और आकाश..... मुझसे कहां जुदा है?
ये फ़ितरत मेरी.........मैंने खुदको जकड लिया है
अरुण
ग़ज़ल
**************************
हज़ारों हैं ...करोड़ों जीव हैं.... पर आदमी जो
समझता है..ये दुनिया है....तो केवल आदमी ही
कहीं से भी कहीं पर .....जा के बसता है परिंदा
मगर पाबंद कोई है..........तो कोई आदमी ही
जभी हो प्यास पानी खोज लेना.. जानती क़ुदरत
इकट्ठा करके रखने की हवस.......तो आदमी ही
बचाना ख़ुद को उलझन से सहजता है यही लेकिन
फँसाता खुद को....बुनता जाल अपना आदमी ही
बदन हर जीव को देता ज़हन..... जीवन चलाने को
चलाता है ज़हन केवल .........तो केवल आदमी ही
खुदा से बच निकलने की ....कई तरकीब का माहिर
खुदा के नाम से जीता ..... .....तो केवल आदमी ही
अरुण
सपनों भरी है जिंदगी
*********************
दिन के सपने
रात के सपनों पे हंसते हैं...और फिर
कब नींद से जा मिलेते हैं -
इसका उन्हें पता ही नही....
रात और दिन की
इस सपनों भरी जिन्दगी ने..
सपनों के बाहर क्या है
इसे कभी जाना ही नही है
-अरुण
Comments