आज का शेर

खुला जहन हो, दबी आड़ में कितनी बातें
जागा वही के जिसने मुकम्मल देखा
................................................. अरुण

Comments

बहुत सही फ़रमाया , जो मुक्कमिल देखता है वही सचमुच छू के भी अछूता रहता है ...धारा से गुजर कर भी किनारे खड़ा हो जैसे |
saint satya said…
ek sher mera bhi

aaj ka nach
jarurat anaj
mann ki satah
aur gaharai naap?

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