मन से हो या बेमन से हो , जब पार्टी के सभी दिग्गजों ने मेरी महत्वाकांक्षा को बड़े ही नम्रभाव (अविर्भाव) और तारीफों के पुल बांधकर ऊँचा उठाने , उसे पुष्ट करने का मुझसे करार किया हुआ है और जिसके बदले में मैंने उन्हें जीत दिलाने का वादा किया हुआ है ,... आपकी दबी हुई सत्ता कामनाएं और पितामह होने का आपने जो सम्मान उपभोगा उसका गरूर ... वे सब बीच बीच में ही अपना सर क्यों उठाते हैं ? क्यों मेरे हवाई सपनों को नीचे खींचते हैं ?... यह सब ठीक नहीं है. मै भी ऐसे में आपको आपकी आज की असली जगह दिखाने के लिए मजबूर हो जाता हूँ. चाहता तो नहीं पर आपका अपमान किये जाता हूँ. मेरे द्वारा आश्वासित जीत की लालसा या आशा के नीचे आपके सभी साथी , चेले , प्रशंसक इतने झुके हुए हैं कि कोई भी इस समय आपका पक्ष नहीं ले सकता. आप को तो यह सब पता है... फिर भी आप बार बार .......... खैर , खुलेआम तो नही , पर मन ही मन ,... अडवानीजी , जोशीजी , जसवंतजी और ऐसे कई जी.. ओं से मै माफी चाहता हूँ. देश को यदि कांग्रेस मुक्त (बीजेपीबन्ध) बनाना हो तो .. आपको यह सब सहना ही पड़ेगा. - अरुण