तामसी आलस्यवश कोशिशे छोड़ सुस्त पड़ा
रहता है. राजसी का कर्तुत्वभाव उसे कोशिश करने के लिए आग्रह करता रहता है. सात्विक,
जब जैसा आन पड़े वही करता है, उसमें न पलायन वृति है और न ही सिद्धी की ललक.
ऐसा कहा जाता रहा है कि आदमी के आध्यात्मिक उत्थान के मार्ग में षड रिपु - काम क्रोध लोभ मोह मद और मत्सर- बाधा बने रहते है. ये बाधाएँ छह नहीं हैं, एक ही के छह रूप हैं. जहाँ अपना अलग अस्तित्व या अहंता जगी, ये सभी एक दुसरे से अपना अपना रूप धरे चले आते हैं. काम से ही ममत्ववश मोह, मोह से लोभ, लोभ से मत्सर, और परिणामतः क्रोध फूटता है. अहंता ही मत्सर लाती है या मद का संचार जगाती है -अरुण
इस अपरिमित आकाश में खड़ा है समय, आकाश के कण कण में समाये हुए, न कोई आरम्भ और न अंत लिए, मगर इस समयाकाश में इन्सान चल रहा है अपनी गति, दिशा और यात्रा-समय का हिसाब रखते हुए -अरुण
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