रुबाई

रुबाई
******
सोचते हो जो...नही है जिंदगी वैसी
अंधता जो भी कहे...ना रौशनी वैसी
रौशनी रौशन हुई ना कह सकी कुछ भी
केहन सुन्ने की ज़रूरत क्या पड़ी वैसी?
- अरुण

Comments

Popular posts from this blog

षड रिपु

मै तो तनहा ही रहा ...