Posts

Showing posts from February, 2011

झूठ ही झूठ का उपाय है

मन से टूटा आदमी किसी का आशीर्वाद या कृपा चाहता है मन की कमजोरी को मानसिक बल ही जरूरत है इसीलिए यह चाहना होती है कि कोई पास आ कर हमारी पीठ पर आश्वासन का हाँथ रखे, हमें कहे कि घबराओ मत सब ठीक होगा जो चाहो वही मिल जाएगा अगर ऐसा कहने के लिए कोई सामने न हो तो आदमी किसी मूरत के चरणों में सर रखकर या उसके सामने झुककर मन ही मन उससे यह कहलवा लेता है मानसिक विपदाएं या अडचने भी काल्पनिक है और उनसे निपटने के उपाय भी काल्पनिक झूठ ही झूठ का उपाय है सच को किसी उपाय की जरूरत नही ........................................................... अरुण

केवल क्रिया, प्रतिक्रिया नही

तालाब के जल में एक कंकड भी फेंको तो जल में तरंगे उठती हैं मन तरल के जल में इच्छा, प्रेरणा, भावना, प्रतिक्रिया एवं प्रतिसाद के कंकडों की वर्षा सतत चलते रहने से मन तरंगित है, कम्पित है इस कम्पन को रोकना तब तलक असंभव है जब तक दृष्टि में बदलाव के कारण प्रतिक्रिया के कंकड सजीव ही न हों दृष्टि में बदलाव यानी जीवन को इस सकलता और व्यापकता से देखना बन पाए कि केवल क्रियाओं का ही वर्षण हो प्रतिक्रियाओं का नही ................................. अरुण

भगवान सर्वव्याप्त सो निराकार

अगर भगवान कण कण में है क्षण क्षण में है, अगर अस्तित्व की हर प्रक्रिया ही भगवान है तो फिर उसका अपना क्या रूप और आकार हो सकता है निश्चित ही कोई नही ...................................... अरुण

संकट तो है पर संकट, संकट नही लगता

अपने कमरे में शांत बैठे व्यक्ति का ध्यान कमरे के किसी कोने पर जाते ही अगर उसे आग लगी दिखाई देती है तो ऐसे में यही स्वाभाविक है कि वह तत्काल आग बुझाने के काम में सक्रीय होता हुआ पूरा का पूरा ध्यान उस संकट से उबरने में लगा दे वह ऐसा न सोचेगा कि चलो संकट की इस स्थिति से निपटने के उपायों का अध्ययन करें किसी गुरु का आश्रय ले लें इस सम्बन्ध के किसी धर्म से जुड जाएँ और इसतरह परिवर्तन और सुधार के माध्यम से इस परिस्थिति को बदल दें मनुष्य को अपनी मूल गहरी भ्रांतियां दिख तो रही हैं पर उसे यह बात आग लगने जैसी गंभीर नही लग रही और इसीलिए सदियों से आदमी सुधार का के मार्ग अपनाए हुए है और उसकी भ्रांतियां भी उसके आचरण में बरकरार हैं ............................................ अरुण

इंसान और कायनात

इंसान चिंतित है अपने जन्म और मृत्यु को लेकर मगर सारी कायनात का अस्तित्व बस जीवन की धारा के बहते रहने में है कायनात एक एक आदमी के जन्म मृत्यु का हिसाब लगाते नही बैठती ........................................ अरुण

‘ईश्वर’ का अवतरण

मनुष्य जैसे सामाजिक प्राणी की मूल समस्या यह है कि इसके वर्तमान को इसका भूत निगल जाता है भूत के ही पेट में इसकी वर्तमान चेतना इतनी सन जाती है कि सारा भूत ही चेतनामय हुआ जान पडता है यह जान पडने वाली चेतनामयता ही मनुष्य जीवन का आधार बन जाती है और मनुष्य को वर्तमान का विस्मरण हो जाता है वर्तमान का स्मरण ही जीवन में ‘ ईश्वर ’ का अवतरण है .................................... अरुण

बिना प्यास पानी पीना

जब तक सपना वास्तविकता ही लग रहा हो सपने से जागने का विचार उठेगा ही नही अगर उठता है तो मतलब ऐसा विचार सपने ने ही तैयार किया एक कपट मात्र है जब तक नींद में कोई रस या रूचि बची हो जागने का विचार न ही उठे तो अच्छा है जब तक संसार में रस है तब तक परमार्थ की बातें एक छलावा है एक ऊपरी उपचार मात्र है बिना प्यास पानी पीनेवालों जैसा है .............................................. अरुण

सच्चाई जानना और देखना

पृथ्वी गोल है इस सच्चाई को मानव की बुद्धि ने कभी का जान लिया था परन्तु इसकी गोलाई को मानव ने पहली बार तब देखा जब उसकी आँखे पृथ्वी की कक्षा छोड़ अंतरिक्ष में जा पहुंची जीवन की वैश्विक सच्चाई को मनुष्य बुद्धि से जान ले यह पर्याप्त नही है उस सच्चाई को देखने के लिए मन संचालित बुद्धि की कक्षा को छोड़ सकल दृष्टि वाले अंतरिक्ष से जीवन अवलोकन जरुरी है ............................................... अरुण

बंधन हमें नही, हम बंधन को पकडते हैं

किसी भी ख्याल कल्पना या धारण से बंध जाना बहुत बड़ी भूल है ‘ हमें किसी से भी बंधना नही है ’ - ऐसे विचार से भी बंध जाना वैसी ही बड़ी भूल होगी .............................. अरुण

गुड के गणेश और .......

गुड के गणेश जी और गुड का ही प्रसाद ठीक ऐसी ही स्थिति मन-सामग्री के बाबत है मन ही मन के टुकड़े बनाकर, एक टुकड़े को गणेश यानी नियंत्रक और दूसरे को प्रसाद यानी नियंत्रित की भूमिकाओं में बाँट देता है मन पर नियंत्रण यानी दो टुकड़ों में आपसी संघर्ष यानी फिर अशांति ही टुकड़ों का फिर से एक दूसरे में विलीन हो जाना ही अध्यात्मिक कैवल्य है ............................................. अरुण