‘ईश्वर’ का अवतरण

मनुष्य जैसे सामाजिक प्राणी की

मूल समस्या यह है कि

इसके वर्तमान को

इसका भूत निगल जाता है

भूत के ही पेट में

इसकी वर्तमान चेतना

इतनी सन जाती है कि

सारा भूत ही चेतनामय हुआ जान पडता है

यह जान पडने वाली चेतनामयता ही

मनुष्य जीवन का आधार बन जाती है

और मनुष्य को वर्तमान का विस्मरण हो जाता है

वर्तमान का स्मरण ही जीवन में

ईश्वर का अवतरण है

.................................... अरुण

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