केवल क्रिया, प्रतिक्रिया नही
तालाब के जल में
एक कंकड भी फेंको तो
जल में तरंगे उठती हैं
मन तरल के जल में
इच्छा, प्रेरणा, भावना,
प्रतिक्रिया एवं प्रतिसाद के कंकडों की
वर्षा सतत चलते रहने से
मन तरंगित है, कम्पित है
इस कम्पन को रोकना तब तलक
असंभव है जब तक
दृष्टि में बदलाव के कारण प्रतिक्रिया के
कंकड सजीव ही न हों
दृष्टि में बदलाव यानी
जीवन को इस सकलता और व्यापकता से
देखना बन पाए कि केवल
क्रियाओं का ही वर्षण हो
प्रतिक्रियाओं का नही
................................. अरुण
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