गुड के गणेश और .......
गुड के गणेश जी और
गुड का ही प्रसाद
ठीक ऐसी ही स्थिति
मन-सामग्री के बाबत है
मन ही मन के टुकड़े बनाकर,
एक टुकड़े को गणेश यानी नियंत्रक और
दूसरे को प्रसाद यानी नियंत्रित की
भूमिकाओं में बाँट देता है
मन पर नियंत्रण यानी दो टुकड़ों में आपसी संघर्ष
यानी फिर अशांति ही
टुकड़ों का फिर से एक दूसरे में विलीन हो जाना ही
अध्यात्मिक कैवल्य है
............................................. अरुण
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