संवेदना भी वेदना ही
संवेदना भी शरीर के लिए
वेदना जैसी ही है. संवेदना का विषय
उस वेदना को मीठी या खट्टी बनाता है.
ज्ञान की प्रक्रिया में भी,
अंतर-इन्द्रियों के प्रयोग के कारण
अंतर-वेदना अनुभूत होती है
इसीलिए विचार-गति के चलते
मन दुखी या प्रसन्न होता रहता है
हाँ जिस विचार में शुद्ध निरपेक्षता हो
(यानि जिसमें अहंकार का विनियोजन न हो)
वही विचार शुद्ध समझ या बोध जगा पाता है
-अरुण
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