जानना और जीना
मन को मन ही जाने
तन नही जानता मन को
परन्तु
तन को तो मन
हर पल जानता रहता है
मूलतः मन का काम है जानना
और तन का काम है जीना
जानना और जीना एक दूसरे में
घुलमिल चुका है
जानने को अलग रखते हुए
केवल जीने का बोध होते रहना ही समाधी अवस्था है
................................................................. अरुण
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