मनुष्य- जीवन प्रकृति के विरोध में
केवल जीना भी जिंदगी है
और ‘जानते हुए’ जीना भी
जिंदगी
पेड फल जंगल सब जी रहे हैं
कुछ भी जाने बगैर
मनुष्य और दूसरे प्राणी भी जी रहे है
मगर ‘जानने’ के साथ साथ
मनुष्य के जीवन में
‘जानने’ का अनुपात बहुत
बढ़ चुका है और इसी लिए
मनुष्य का जीना दुर्बल बन गया है
सभी दूसरे प्राणी अपनी प्राकृतिक अवस्था में
जितना जरूरी है उतना ही ‘जानते’ हैं और
इस तरह पूरी तरह प्राकृतिक
जिंदगी जी रहे हैं
मनुष्य जरूरत से अधिक ‘जानने’ के कारण
प्रकृति के विरोध में बना रहकर
संघर्ष का जीवन जी रहा है
........................................ अरुण
Comments