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क्या कोई आसमान को देखने की सोचेगा
खुद की ऊँचाई चौड़ाई गहराई.. खो देने के बाद?
-अरुण

अक्रीय ही देख पाए सक्रीयता.. शून्य ही समझ पाए शब्द और पैमाने...इसीलिए शून्य में जो ठहरे वही हो पाए...सयाने
-अरुण

तमन्ना है ताक़त....ज़िंदगी में जान फूँक देती है
मगर उसमें जो अटके उसे वह तबाह कर देती है
-अरुण
तूफ़ानों से परेशान  ज़िंदगी चाहकर भी क्या चाहे..राहत चाहे.. सुकून न मिल पाया कभी चाहने से..सो बस राहत चाहे
-अरुण
एक रूपक
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मानो मशीन चलती है आवाज उठाती जाती
रूह का मान उस आवाज को ग़लती से मिले
बस यही सोच घुसी जबसे.....इंसानी क़ौम
क़ुदरती देह में......बेकुदरत मन हक़ से जिए
-अरुण

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