मन क़ी तरंग

सच्चाई
सच्चाई तो सच्चाई है
अलग आदमी, समुदाय या धर्म के लिए
अलग कैसे हो सकती है ?
हिन्दू की कोई और... क्रिश्चन की कोई और,
नही! -
ये कोई कहानी नही कि हरेक जुबां पे बदलती जाए
उसके आज और कल में फर्क आए
अलग अलग जगह पे अलग अलग सुनी जाए
ये सच्चाई है
अनाम, अनिजी,
बिना किसी व्यक्तित्व या भिन्नत्व के जीने वाली
यहाँ जैसी है वैसी ही वहाँ
इसके बाबत जैसी है वैसी ही उसके बाबत
ये सच्चाई अगर सब ने देख ली होती तो शायद
दुनिया में अलग अलग धर्म न होते, मान्यताएं न होती
आदमी झूठ का गुलाम न होता
वह अपनी साँस विश्वास के बल पर नही तो
एहसास के साथ लेता
अस्तित्व ही अस्तित्व को समझ सकता है
कोई आस्तिकता या नास्तिकता नही
.............................................................. अरुण

Comments

बहुत सही बात को इतनी उम्दा अभिव्यक्ति...

आलोक साहिल
Shekhar Kumawat said…
WAKAY ME SACHAI SACHAI HOTI HE


http://kavyawani.blogspot.com/

SHEKHAR KUMAWAT

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