मन की तरंग
'मेरा मेरा' ही तो चिंता की असली जड़
दूर कहीं आग दिखी
ज्वालायें धधक रहीं
इस अजीब दृश्य से
साक्षी था आकर्षित
और तभी कानों में स्वर गूंजा ...
दृश्य नही घर तेरा, तेरा घर जल रहा
बस तभी -
दृश्य का चेहरा ही बदल गया
दौड़ पड़ा वह साक्षी
चिंता से विकल हुआ
खुद से ही पूछ रहा
कैसे बच पाए घर
मेरा घर, मेरा घर
'मेरा मेरा' ही तो चिंता की असली जड़
................................................. अरुण
दूर कहीं आग दिखी
ज्वालायें धधक रहीं
इस अजीब दृश्य से
साक्षी था आकर्षित
और तभी कानों में स्वर गूंजा ...
दृश्य नही घर तेरा, तेरा घर जल रहा
बस तभी -
दृश्य का चेहरा ही बदल गया
दौड़ पड़ा वह साक्षी
चिंता से विकल हुआ
खुद से ही पूछ रहा
कैसे बच पाए घर
मेरा घर, मेरा घर
'मेरा मेरा' ही तो चिंता की असली जड़
................................................. अरुण
Comments
wow!!!!!!!!!!!
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/