मन की तरंग
जो अधधरी सो अधछूटी
जो चीज पकड़ी ही न गई हो
वह छूटेगी कैसे?
इसी तरह जो चीज पूरी तरह से पकड़ी न गई हो या
अधूरी पकड़ी गई हो उसे पूरी तरह से छोड़ने का सवाल ही नही
बात आदतों क़ी हो रही है
जो चीजे पूरी समझ से नही क़ी जाती वह आदत बन चिपक जाती हैं ,
अपनी बेहोशी में ( अध्यान अवस्था में )
बार बार क़ी गई कृति या विचार देह-मन क़ी आदत बन जाती है
आदत क़ी आंखोमें ध्यान गड़ाकर देखने वाला ही उसकी बाध्यता से
छुटकारा पा सकता है
.................................................. अरुण
जो चीज पकड़ी ही न गई हो
वह छूटेगी कैसे?
इसी तरह जो चीज पूरी तरह से पकड़ी न गई हो या
अधूरी पकड़ी गई हो उसे पूरी तरह से छोड़ने का सवाल ही नही
बात आदतों क़ी हो रही है
जो चीजे पूरी समझ से नही क़ी जाती वह आदत बन चिपक जाती हैं ,
अपनी बेहोशी में ( अध्यान अवस्था में )
बार बार क़ी गई कृति या विचार देह-मन क़ी आदत बन जाती है
आदत क़ी आंखोमें ध्यान गड़ाकर देखने वाला ही उसकी बाध्यता से
छुटकारा पा सकता है
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