मन की तरंग

एक गज़ल
बचपन से पाप पुण्य की घुट्टी पिलाई जाती
अपने ही दिल में बंदा गुनहगार बन गया

इच्छाएं कुदरती को दबाने की नसीहत
सारी बुराइयों का तलबगार बन गया

हर आदमी में दहशत भगवान की भरी
मजहब का हर सिपाही निगह्गार बन गया

किस्से कहानियों पे रख्खो कहे भरोसा
सच्चाई का जो दुश्मन, असरदार बन गया

कोई न मोहमाया भटका सके उसे
लम्हे की हर अदा का ख़बरदार बन गया
..............................
.......................... अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
बहुत बढ़िया गज़ल!
सारी बुराइयों का तलबगार बन गया
कमोबेश किसी के भी अंतर्मन में झांकिए, इसी तरह की प्रतिध्वनियां आती हैं। अच्छा लिखा है आपने।
बचपन से पाप- पुण्य की घुट्टी पिलाई गयी फिर भी दिल तो गुनाहगार रहा ...
संस्कार सिर्फ घुट्टी में नहीं मिलते ...अंतरात्मा का जागना जरुरी है ...!!
बहुत बढ़िया गज़ल!

bahut kub


http://kavyawani.blogspot.com/

shekhar kumawat

Popular posts from this blog

लहरें समन्दर की, लहरें मन की

जो जैसा है वैसा ही देखना

तीन पोस्टस्