क्रांति - बरगद बना गुलाब

बरगद का विराट वृक्ष
अपने विस्तार को समझ रहा है
हवा के टकराव से उभरते आन्दोलनों को देख रहा है
पत्ते पत्ते को देखता परखता
अपनी ही शाखाओं और टहनियों से गुजरता
लौट जाता है अपने ही बीज में जहाँ से चला था
तो अचानक क्रांति घटी -
बीज टूटा
तिनके तिनके बिखर गये और
इसी बिखराव में उभर आया
एक नया बीज गुलाब का
अब वह फले न फले
बढे न बढे
फूल खिलाये न खिलाये
सुगंध फैलाये न फैलाये
फिर भी अब है वह गुलाब
शुद्ध गुलाब
................................... अरुण

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