स्मृति की आँखे अंधी

रास्तों को ढूँढने में
स्मृति काम आती है
पर कदमों तले उभरनेवाली
पगडंडियों को वह देख नही पाती
उसपर से गुजर तो जाती है
पर उसे बिना देखे,
उसके प्रति सोये हुए
................................ अरुण

Comments

Unknown said…
सुन्दर,सशक्त व सार्थक अभिव्यक्ति......
Udan Tashtari said…
बहुत बढ़िया!

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