धर्म और धर्म की परंपरा
धर्म आएंगे,
धर्म जाएंगे,
पीछे छोड़ एक लाश परंपरा की
जिस लाश की पूजा में
रत हैं/ रहेंगी पीढीयाँ
सदियों तक
......................... अरुण
धर्म जाएंगे,
पीछे छोड़ एक लाश परंपरा की
जिस लाश की पूजा में
रत हैं/ रहेंगी पीढीयाँ
सदियों तक
......................... अरुण
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कविता अंतर्मंथन के लिए उन्हें विवश करेगी जो पंथों को सब कुछ मान बैठे हैं।