कुछ शेर

अपने ही घर में बैठे खिड़की से झांकता हूँ
दुनिया ने ध्यान खींचा घर की न सुध रही

अँधेरे को हटाता रहा, न हट पाया
रात दिन, रौशनी के गीत गाता रहा

धुएँ सी शख्सियत मेरी, धुआं ही बटोरता हूँ
धुआं कहाँ से चला, पता नहीं
.................................................... अरुण

Comments

पने ही घर में बैठे खिड़की से झांकता हूँ
दुनिया ने ध्यान खींचा घर की न सुध रही
बहुत सुन्दर बधाई
Mithilesh dubey said…
बहुत खूब। लाजवाब
बेहद सुन्दर है !बधाई!
Jyoti said…
बहुत खूब

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