कुछ शेर

'गुलाब को काटे न हों- तो कितना बेहतर,
ये सोच ही तरक्की-ओ-परेशानी भी

उमंग में जनम और विषाद में मौत
ये सिलसिला-ए- जिंदगी कबतक

आजादी जानी नहीं पर चाही हरदम
जिंदगी जी ली पिंजडे बदल बदल कर
.............................................. अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
आजादी जानी नहीं पर चाही हरदम
जिंदगी जी ली पिंजडे बदल बदल कर



--बहुत ऊँची बात कह गये आप!!
आजादी जानी नहीं पर चाही हरदम
जिंदगी जी ली पिंजडे बदल बदल क
सटी, खूबसूरत् शुभकामनायें
Jyoti said…
आजादी जानी नहीं पर चाही हरदम
जिंदगी जी ली पिंजडे बदल बदल कर
वह क्या बात हैं...!

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