दो शेर

अच्छों से और बुरों से दोनों से करे संग
कोई भी रंग आसमाँ पे चढ़ता नहीं

उलझना हो दुनिया में तो ऐसे उलझो
जैसे कि परिंदों से आसमाँ उलझे
.......................................... अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
उलझना हो दुनिया में तो ऐसे उलझो
जैसे कि परिंदों से आसमाँ उलझे

-बहुत खूब!!
Mithilesh dubey said…
बेहद खूबसूरत रचना । बधाई

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