मन की तरंग

आवाज के भीतर ख़ामोशी का एहसास
इस आवाजभरी जिंदगी में
आवाज छुपा रखती है एक ख़ामोशी भीतर
जिसने आवाज सुनी- ठीक ठीक
उसे ख़ामोशी भी दिखी - ठीक ठीक
परन्तु ख़ामोशी के केवल सपने देखने वाले
न तो आवाज सुनतें हैं - ठीक ठीक
और न ही ख़ामोशी को देख पातें हैं - ठीक ठीक
........................................................... अरुण

Comments

RAJNISH PARIHAR said…
बहुत अच्छी है कविता!!!मेरी शुभकामनाये !!!
Shekhar Kumawat said…
न तो आवाज सुनतें हैं - ठीक ठीक
और न ही ख़ामोशी को देख पातें हैं - ठीक ठीक
.


bahut sundar

wow !!!!!!!!!!


shekhar kumawat

http://kavyawani.blogspot.com/

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के