एकत्व का पुनर्जागरण

मनुष्य का मूल स्वरूप है

उसका अस्तित्व के साथ एक्त्व

इसी एक्त्व में रहकर

वह प्राणों के माध्यम से सजीव बना रहता है

परन्तु उसकी सजीवता जब समुदाय संवाद के लिए

प्रवृत्त होती है, उसकी चित्तता में भेद फलने के कारण

व्यक्तित्व और समाज जैसा द्वैत

अपने मायावी स्वरूप में सजीव हो उठता है

इसी द्वैत-लिप्त चित्त में हमारी सजीवता एवं मूल एकत्व

संकुचित हो गया है

चित्त में एकत्व के असंकुचन एवं पुनर्जागरण के लिए

समाधी ही एक उपाय है

............................................... अरुण

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