अपनी पहचान
हांथ टूटे या घायल हो जाएं तो
हाथों के काम रुक जाते हैं, पैरे न हो तो चलना
मुश्किल बन जाता है.
ठीक इसी तरह मस्तिष्क की कुछ विशेष प्रकार की
खराबियों की वजह से आदमी अपनी तथा आसपास के लोगों की
पहचान भूल बैठता है
मतलब साफ है –
अपनी और अपने संबंधों की
पहचान केवल मस्तिष्क निर्मित भ्रम-वस्तु है,
यह अस्तित्वगत नही है
........................................... अरुण
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